इंसानी त्वचा को ‘चुम्बक’ की तरह इस्तेमाल करता है जीका वायरस

saurabh pandey
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बदलते मौसम और शहरीकरण के कारण एडीज एजिप्टी मच्छरों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे जीका वायरस 90 से अधिक देशों में फैल चुका है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वायरस मानव त्वचा में परिवर्तन कर ऐसा रासायनिक संकेत भेजता है, जिससे अधिक मच्छर संक्रमित होते हैं और वायरस तेजी से फैलता है।

जीका वायरस का बढ़ता प्रभाव

पर्यावरणीय बदलावों और शहरी विस्तार के कारण एडीज एजिप्टी मच्छरों की संख्या बढ़ रही है, जिससे जीका वायरस का प्रसार तेज हुआ है। इन मच्छरों के बढ़ने से डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ भी फैल रही हैं । हालांकि, वैज्ञानिकों को अभी भी यह पूरी तरह समझ नहीं आया है कि जीका वायरस इतनी तेजी से कैसे फैलता है।

शोधकर्ताओं की नई खोज

लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के एक नए अध्ययन में पता चला है कि जीका वायरस मानव त्वचा में जैविक परिवर्तन करता है, जिससे यह अधिक मच्छरों को आकर्षित करने लगता है।

इसका अर्थ यह है कि वायरस त्वचा को ऐसे तत्व छोड़ने के लिए प्रेरित करता है, जिससे मच्छर ज्यादा संख्या में आते हैं। यह अध्ययन कम्युनिकेशन्स बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

त्वचा में होने वाले बदलाव

शोध में यह सामने आया कि जीका वायरस त्वचा की कोशिकाओं (फाइब्रोब्लास्ट) को प्रभावित कर जीन और प्रोटीन संरचना में बदलाव करता है, जिससे त्वचा अधिक संवेदनशील हो जाती है।

वैज्ञानिक व्याख्या

इन जैविक परिवर्तनों के कारण त्वचा अधिक मात्रा में वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) छोड़ती है, जो मच्छरों को आकर्षित कर काटने के लिए प्रेरित करते हैं।

यह अध्ययन मेटा-प्रोटिओम विश्लेषण पर आधारित है, जो यह जांचता है कि शरीर में जीन और प्रोटीन किस प्रकार समन्वय बनाते हैं।

विशेषज्ञों की राय

शोधकर्ता डॉक्टर नौशीन इमामी के अनुसार, “जीका वायरस संयोग से नहीं फैलता, बल्कि यह अपने प्रसार को बनाए रखने के लिए मानव शरीर में सक्रिय रूप से परिवर्तन करता है।”

जीका वायरस केवल मच्छरों के बढ़ते प्रभाव से नहीं फैलता, बल्कि मानव शरीर में होने वाले जैविक बदलाव भी इसकी वृद्धि में सहायक होते हैं। यह शोध वायरस को नियंत्रित करने के नए तरीके खोजने में मदद कर सकता है।

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