भारत में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ लोगों की संख्या 55.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा दक्षिण एशिया के औसत 53.1 प्रतिशत से भी अधिक है। 2020 के कोविड-19 महामारी के वर्ष को छोड़कर, इस अनुपात में लगातार वृद्धि देखी गई है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट, “स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड (SOFI)” में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत की स्थिति पाकिस्तान (58.7 प्रतिशत) के बाद दूसरी सबसे खराब रही है, हालांकि अफगानिस्तान के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 2017 में, भारत में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ आबादी का अनुपात 69.5 प्रतिशत था। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की पांच एजेंसियों द्वारा प्रकाशित की गई है और इसमें स्वस्थ आहार की परिभाषा चार प्रमुख पहलुओं पर आधारित है: विविधता, पर्याप्तता, संयम, और संतुलन।
स्वस्थ आहार के लिए कुपोषण और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थ
वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत की 38 प्रतिशत आबादी अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का सेवन करती है, जबकि केवल 28 प्रतिशत लोग सभी पांच खाद्य समूहों का सेवन करते हैं। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 2021 से 2023 के बीच भारत में 19.46 करोड़ लोग कुपोषित रहे, जो कुल आबादी का 13.7 प्रतिशत है। 2021 में वेस्टिंग से प्रभावित बच्चों की संख्या 2.19 करोड़ (18.7 प्रतिशत) थी, जो 2022 में बढ़कर 3.61 करोड़ (31.7 प्रतिशत) हो गई।
वैश्विक परिदृश्य
वैश्विक स्तर पर, 35.4 प्रतिशत लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। इनमें से 64.8 प्रतिशत अफ्रीका में और 35.1 प्रतिशत एशिया में हैं। कुपोषण को विभिन्न रूपों में वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें कम वजन और स्टंटिंग शामिल हैं।
भारत में स्वस्थ आहार की पहुंच में लगातार कमी आ रही है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। दक्षिण एशिया में सबसे खराब स्थिति के बावजूद, समस्या का समाधान करने के लिए तत्काल और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। कुपोषण और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण भारत में स्वास्थ्य संकट गहरा रहा है। इस समस्या का समाधान करने के लिए नीतिगत बदलाव और खाद्य सुरक्षा में सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
Source and data – अमर उजाला