जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाओं में काफी वृद्धि हो सकती है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, सदी के अंत तक जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। वर्तमान में हर साल करीब 34 करोड़ से 37 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र जंगल की आग से प्रभावित होता है, जो पर्यावरणीय संकट को दर्शाता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते भविष्य में सूखा, उच्च तापमान और तेज हवाओं में वृद्धि देखने को मिल सकती है। ये सभी कारक आग के फैलाव को बढ़ाने और उसकी तीव्रता को बढ़ाने में सहायक होंगे।
आग बुझाने के पारंपरिक और आधुनिक तरीकों पर जोर
एफएओ के वानिकी प्रभाग के निदेशक जिमिन वू ने कहा कि जंगल की आग की चुनौती से निपटने के लिए अब वैज्ञानिक और पारंपरिक दोनों ही तरीकों को अपनाना आवश्यक है। नई गाइडलाइन में आग लगने से पहले, उसके दौरान और उसके बाद कार्रवाई की दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। स्थानीय समुदायों को जागरूक करना और उन्हें आग से निपटने के तरीके सिखाना भी इस प्रयास का हिस्सा है।
गाइडलाइन और सतत विकास पर प्रभाव
एफएओ ने जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए विशेष गाइडलाइन जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, जब जंगल की आग बहुत भीषण हो जाती है, तो यह सतत विकास को प्रभावित करती है, समुदायों की आजीविका को खतरा पहुँचाती है, और बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है। कई वर्षों में, इन आग की घटनाओं से सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है और हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन के इस खतरे का मुकाबला करने के लिए विश्व स्तर पर एक समग्र और प्रभावी योजना की आवश्यकता है। भविष्य में अधिक व्यापक और गंभीर आग की घटनाओं से निपटने के लिए सभी देश और समुदाय को मिलकर प्रयास करने होंगे।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उत्पन्न होने वाली आग की घटनाएं वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या बन चुकी हैं। सदी के अंत तक आग लगने की घटनाओं में 50 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान चिंताजनक है। इससे न केवल जंगलों का नुकसान होगा, बल्कि पूरे ग्रह के पारिस्थितिक तंत्र पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीकों को मिलाकर प्रभावी नीतियां बनाना और लागू करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
Source and data – अमर उजाला