विश्व जल सप्ताह के मौके पर एक नई रिपोर्ट ने भारत में पानी के संकट के चलते बढ़ती संघर्षों की घटनाओं पर गंभीर चिंता जताई है। पैसिफिक इंस्टीट्यूट द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 12 महीनों में पानी को लेकर संघर्ष की घटनाओं में 150% की वृद्धि हुई है। जहां 2022 में पानी को लेकर दस प्रमुख संघर्ष रिपोर्ट किए गए थे, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 25 हो गई है।
भारत में पानी के लिए हो रहे संघर्ष की यह स्थिति खासतौर पर चिंता का विषय है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम माना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जल संसाधनों को लेकर अब तक कुल 145 संघर्ष घटनाएं दर्ज की गई हैं।
इस बढ़ते संकट का सिलसिला सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है; वैश्विक स्तर पर भी पानी को लेकर संघर्षों में इजाफा हुआ है। 2023 में दुनिया भर में पानी से जुड़े संघर्षों की घटनाएं 50% से ज्यादा बढ़ गई हैं। 2022 में 231 ऐसे संघर्षों की घटनाएं दर्ज की गई थीं, जो 2023 में बढ़कर 347 पर पहुंच गई हैं। यह बढ़ोतरी पिछले एक दशक से जारी है, और साल 2000 में जल संसाधनों को लेकर महज 22 संघर्ष घटनाएं रिपोर्ट की गई थीं, जो अब 1,477% तक बढ़ चुकी हैं।
इन संघर्षों में जल प्रणालियों पर हमले, पानी पर नियंत्रण की कोशिशें, और युद्धों में पानी को हथियार के रूप में उपयोग जैसे मामलों का समावेश है। हाल की रिपोर्ट में भारत के विभिन्न हिस्सों से दर्ज की गई हिंसक घटनाओं में झारखंड, तमिलनाडु, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड शामिल हैं।
उदाहरण के तौर पर, झारखंड के रांची में एक पानी के टैंकर और मशीनरी को आग लगा दी गई, तमिलनाडु में पीने के पानी के दुरुपयोग को लेकर एक व्यक्ति की मौत हो गई, और कर्नाटक के हुबली में जल आपूर्ति के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन के दौरान झड़पें हुईं। उत्तराखंड के जोशीयारा में जलभराव के खिलाफ प्रदर्शन कर रही महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई, जबकि पंजाब के फरया मालवाला में पानी निकालने को लेकर हुए संघर्ष में एक व्यक्ति की मौत और तीन अन्य घायल हो गए।
इन घटनाओं के पीछे के कारणों में जल संसाधनों की कमी, राजनीतिक विवाद, और सामाजिक असमानता प्रमुख हैं। राजस्थान में पानी तक पहुंच को लेकर सामाजिक भेदभाव की घटनाएं भी सामने आई हैं, और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में पानी के पाइप विवाद को लेकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई।
इस बढ़ते संकट का समाधान निकालना अत्यंत आवश्यक है, ताकि भविष्य में पानी को लेकर संघर्षों की घटनाओं को कम किया जा सके। इसके लिए प्रभावी नीतियों और जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पानी के लिए संघर्ष की घटनाओं में और वृद्धि हो सकती है, जिससे समाज पर गंभीर असर पड़ेगा।
भारत में पानी के लिए बढ़ते संघर्षों की घटनाएं एक गंभीर चेतावनी हैं जो जल संकट की गहराई को दर्शाती हैं। पिछले 12 महीनों में संघर्ष की घटनाओं में 150% की वृद्धि ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जल संसाधनों की बढ़ती कमी और इसके असमान वितरण ने समाज में तनाव और हिंसा को जन्म दिया है।
विश्व जल सप्ताह के इस अवसर पर यह आवश्यक है कि सभी stakeholders, सरकारें और समाज मिलकर जल प्रबंधन की योजनाओं को मजबूत करें और जल संसाधनों के उचित वितरण को सुनिश्चित करें। जल संकट के समाधान के लिए प्रभावी नीतियां, जल संरक्षण के उपाय, और समाज में जल के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना अनिवार्य है।
अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भारत में जल विवादों और संघर्षों की संख्या में और वृद्धि हो सकती है, जो सामाजिक स्थिरता और शांति को चुनौती देगा। इसलिए, जल संकट को प्राथमिकता देने और इसे संबोधित करने के लिए एक साझा और सुदृढ़ दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में जल संसाधनों को लेकर संघर्ष की घटनाओं को रोका जा सके और समाज में समरसता और शांति बनाए रखी जा सके।
source- down to earth