ओजोन परत, जिसे हम पृथ्वी की प्राकृतिक ढाल भी कहते हैं, सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से जीवन को बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ओजोन परत हमारे वायुमंडल के समताप मंडल में स्थित है, जहां यह उन अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित करती है, जो न केवल त्वचा के कैंसर का कारण बन सकती हैं, बल्कि समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचाती हैं। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में इस परत को गंभीर क्षति पहुंची है, जिसका मुख्य कारण मानव निर्मित रसायनों का वायुमंडल में उत्सर्जन है। इस क्षति ने वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित किया है, और ओजोन परत संरक्षण अब पर्यावरणीय चुनौतियों की सूची में सबसे ऊपर है।
ओजोन परत का महत्त्व
समताप मंडल में पाई जाने वाली ओजोन परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट-बी (यूवीबी) किरणों को अवशोषित करती है, जिससे इन खतरनाक विकिरणों का अधिकांश हिस्सा पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता। यह विकिरण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और प्रतिरक्षा तंत्र के कमजोर होने जैसे स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं। न केवल मनुष्य बल्कि समुद्री जीवन, पेड़-पौधों और भूमि पर रहने वाले जीव-जंतुओं को भी यह विकिरण प्रभावित कर सकती है। यदि ओजोन परत कमजोर होती है, तो पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ सकता है, जिसका असर फसलों और खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है।
ओजोन परत में छिद्र: क्या है कारण?
ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले मुख्य कारकों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी), हैलोन और कार्बन टेट्राक्लोराइड जैसे रसायन शामिल हैं। ये रसायन, जिन्हें हम सामान्यत: रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर और एरोसोल स्प्रे में इस्तेमाल करते हैं, जब वायुमंडल में पहुंचते हैं, तो यह ओजोन अणुओं को तोड़ते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि ओजोन परत कमजोर हो जाती है, और कई स्थानों पर ‘ओजोन छिद्र’ का निर्माण हो जाता है।
विशेष रूप से अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र की समस्या सबसे गंभीर है। ठंडी जलवायु में क्लोरीन और ब्रोमीन अणुओं की गतिविधि तेज हो जाती है, जिससे ओजोन तेजी से टूटता है। यह छिद्र हर साल सर्दियों के मौसम में बड़ा हो जाता है, जिससे वहां की जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन पर खतरा मंडराता है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओजोन परत की रक्षा में एक मील का पत्थर
ओजोन परत की रक्षा के लिए 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका मुख्य उद्देश्य ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उत्पादन और खपत को नियंत्रित करना था। इस समझौते के तहत, सीएफसी और अन्य ओजोन-नाशक रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अब तक सबसे सफल पर्यावरणीय समझौतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इसके कारण ओजोन परत धीरे-धीरे पुनः भरने लगी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यही रफ्तार रही तो 2050 तक ओजोन परत पूरी तरह से पुनर्स्थापित हो सकती है। इसके अलावा, यह प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में भी मददगार साबित हुआ है, क्योंकि सीएफसी और एचएफसी जैसी गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव में भी योगदान करती हैं।
हालात कितने बेहतर हुए हैं?
पिछले कुछ सालों में ओजोन परत में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि सभी देश मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नियमों का सही तरीके से पालन करते हैं, तो आने वाले दशकों में ओजोन परत फिर से अपने मूल आकार में आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2000 के बाद से ओजोन छिद्र धीरे-धीरे छोटा हो रहा है, और अंटार्कटिका के ऊपर स्थित बड़ा छिद्र भी मामूली रूप से सिकुड़ा है।
ओजोन परत संरक्षण के सामने चुनौतियां
हालांकि ओजोन परत के संरक्षण में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। एचएफसी जैसे विकल्प, जो सीएफसी का स्थान ले चुके हैं, वे भी ग्रीनहाउस गैसों के रूप में हानिकारक हैं। हालांकि ये ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन ये जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक हैं। इसी वजह से 2016 में किगाली संशोधन को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में जोड़ा गया, जो एचएफसी के उत्पादन और उपयोग को कम करने का प्रयास करता है।
भविष्य
ओजोन परत के संरक्षण के प्रयासों को जारी रखना और बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। हमें न केवल ओजोन-नाशक रसायनों से बचना होगा, बल्कि उन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी नियंत्रित करना होगा जो जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही हैं। इसके लिए सरकारों, उद्योगों और व्यक्तियों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। हमें ऊर्जा की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों और ओजोन परत को नुकसान न पहुंचाने वाले उत्पादों को अपनाने की दिशा में काम करना होगा।
ओजोन परत का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि मानवता के अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों ने इस दिशा में हमें एक अच्छा उदाहरण दिया है कि हम किस तरह से वैश्विक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। आने वाले वर्षों में, हमें इस दिशा में और अधिक जागरूकता फैलाने की जरूरत है, ताकि हम ओजोन परत को पूरी तरह से पुनर्स्थापित कर सकें और अपनी पृथ्वी को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित बना सकें।
ओजोन परत को बचाना हमारी जिम्मेदारी है, और हमें इस ढाल को संरक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
source- down to earth