बारिश के बाद जलभराव अब एक आम समस्या बन गई है, जिसका एक महत्वपूर्ण कारण प्लास्टिक प्रदूषण, खासकर पॉलीथिन, है। यह समस्या शहरी इलाकों में गंभीर हो रही है, जहां प्लास्टिक की उपस्थिति जल निकासी की व्यवस्था को अवरुद्ध कर देती है।
प्लास्टिक का प्रभाव
प्रोफेसर विंध्यवासिनी पांडे और शुभम कुमार सानू के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में जलभराव का एक प्रमुख कारण प्लास्टिक प्रदूषण है। जब प्लास्टिक सामग्री, जैसे पॉलीथिन बैग और अन्य सिंगल-यूज प्लास्टिक, नालियों और पाइपों में फंस जाती है, तो पानी का बहाव बाधित हो जाता है। इससे जलभराव की स्थिति पैदा होती है, जो अक्सर जानलेवा साबित हो सकती है। हाल ही में दिल्ली में हुई छात्र मौत की घटनाएँ और अन्य शहरों में हुई मौतें जलभराव के गंभीर प्रभावों को दर्शाती हैं।
प्लास्टिक का उत्पादन और पुनर्चक्रण
वर्तमान में, प्लास्टिक प्रदूषण वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर समस्या बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, पिछले सात दशकों में 8.3 बिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है, जिसमें से केवल नौ प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया गया है। भारत में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसमें से केवल 9,205 टन प्लास्टिक का ही पुनर्चक्रण किया जा रहा है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, भारत सरकार ने जुलाई 2022 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है।
सरकारी उपाय और जमीनी स्तर पर स्थिति
हालांकि, सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद, सिंगल-यूज प्लास्टिक का उपयोग बाजारों, दुकानों और सब्जी मंडियों में धड़ल्ले से जारी है। यह समस्या नालियों को जाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए न केवल सख्त कानूनों की आवश्यकता है, बल्कि लोगों को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है।
संस्थान और जागरूकता
कुछ शिक्षण संस्थान प्लास्टिक मुक्त वातावरण की दिशा में काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय का इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय ने अपने परिसर को लगभग पांच साल पहले प्लास्टिक मुक्त बनाया। यह पहल अन्य शिक्षण संस्थानों द्वारा भी अपनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि छात्रों और जनता को प्लास्टिक प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक किया जा सके।
प्लास्टिक प्रदूषण और जलभराव की समस्या को हल करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह न केवल सरकारी नीतियों और कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की मांग करता है, बल्कि लोगों की दैनिक आदतों में भी बदलाव की जरूरत है। प्लास्टिक मुक्त वातावरण की दिशा में किए गए प्रयासों को बढ़ावा देने और सख्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने से ही इस समस्या का समाधान संभव है।
जलभराव और प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर और बढ़ती हुई समस्या है, जिसका समाधान केवल सरकारी नीतियों और कानूनों के क्रियान्वयन से नहीं हो सकता। यह आवश्यक है कि हम सभी स्तरों पर, विशेषकर व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर, सक्रिय रूप से योगदान दें। प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग को कम करने, पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने, और प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने से हम जलभराव की समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।
शहरी क्षेत्रों में प्लास्टिक के प्रभाव को कम करने के लिए और अधिक प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। शिक्षण संस्थानों और सामुदायिक संगठनों द्वारा किए गए प्रयास, जैसे कि प्लास्टिक मुक्त वातावरण की पहल, दूसरों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हो सकते हैं। केवल सामूहिक प्रयास और जागरूकता से ही हम इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान सुनिश्चित कर सकते हैं।
Source- dainik jagran