पारंपरिक ज्ञान से जुड़े नवाचार से जल संरक्षण को मिली ताकत

saurabh pandey
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गुजरात में खंभाती कुओं से वर्षा जल संचयन की नई पहल

भारतीय पारंपरिक ज्ञान और नवाचार के संगम से जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। गुजरात के खंभात क्षेत्र में विकसित किए जा रहे खंभाती कुएं ने जल संचयन की प्रक्रिया को एक नया आयाम दिया है। पर्यावरणविद् और वास्तुकार लोकेंद्र बालसारिया ने इस परंपरागत निर्माण विधि का पुनरुद्धार किया है, जो अब न केवल वर्षा जल का संचयन कर रहा है, बल्कि भूजल स्तर को भी बढ़ा रहा है।

खंभाती कुएं: परंपरा और आधुनिकता का संगम

150 साल पहले, खंभात में जल संकट से निपटने के लिए स्थानीय बुजुर्गों ने एक विशेष विधि का उपयोग किया था। यह विधि आज भी जल संचयन के एक प्रभावी तरीके के रूप में जीवित है। लोकेंद्र बालसारिया ने इस परंपरागत निर्माण विधि को आधुनिक वास्तुकला और नवाचार के साथ जोड़कर खंभाती कुएं बनाए हैं। अहमदाबाद जिले में अब तक 100 से अधिक खंभाती कुएं स्थापित किए जा चुके हैं, जो वर्षा के पानी को जमीन में सुरक्षित रूप से संचित कर रहे हैं।

खंभाती कुओं की विशेषताएं और लाभ

लोकेंद्र बालसारिया के अनुसार, खंभाती कुओं की भीतरी दीवारों की बनावट मधुमक्खी के छत्ते जैसी होती है, जो पानी के प्रवाह को बेहतर ढंग से नियंत्रित करती है। इन कुओं के माध्यम से पानी की मात्रा को सीधे बोरवेल से जोड़ा जा सकता है, जिससे बोरवेल की विफलता की संभावना कम हो जाती है। इसके अलावा, खंभाती कुओं की डिजाइन के कारण पानी की क्षार मात्रा को 1700 से घटाकर 1000 टीडीएस तक कम किया जा सकता है।

जल संकट से राहत: वास्तविक प्रभाव

अहमदाबाद के ग्रामीण पुलिस मुख्यालय में एक 60 फीट गहरा और 15 फीट चौड़ा खंभाती कुआं स्थापित किया गया है, जिससे हर घंटे लगभग एक लाख लीटर वर्षा का पानी जमीन में जाता है। इस परियोजना से न केवल स्थानीय लोगों को जल संकट से राहत मिली है, बल्कि आसपास के 60 परिवारों की पानी की समस्या भी हल हो जाएगी।

नवाचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

लोकेंद्र बालसारिया का यह प्रयास जल संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नवाचार साबित हो रहा है। खंभाती कुओं की विधि को आधुनिक वास्तुकला और तकनीकी दृष्टिकोण से जोड़कर जल संकट से प्रभावी तरीके से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। इस पहल से न केवल जल संरक्षण की दिशा में प्रगति हो रही है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान की पुनरावृत्ति भी हो रही है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर साबित होगी।

गुजरात में खंभाती कुओं के नवाचार ने जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। पारंपरिक निर्माण विधियों को आधुनिक तकनीक और वास्तुकला के साथ जोड़कर लोकेंद्र बालसारिया ने जल संचयन के प्रभावी उपाय प्रस्तुत किए हैं। ये कुएं न केवल वर्षा जल को संचित करने में सक्षम हैं, बल्कि भूजल स्तर को बढ़ाने और जल संकट से राहत प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

खंभाती कुओं की विशेष डिजाइन और उनकी कार्यप्रणाली ने जल संरक्षण की प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बना दिया है। यह पहल न केवल पारंपरिक ज्ञान की महत्वपूर्ण पुनरावृत्ति है, बल्कि आधुनिक समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करती है। जल संकट से निपटने के लिए इस तरह के नवाचार अन्य क्षेत्रों में भी अपनाए जा सकते हैं, जिससे व्यापक स्तर पर जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन संभव हो सके।

लोकेंद्र बालसारिया की इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया है कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का संगम जल संकट जैसे गंभीर मुद्दों के समाधान में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस दिशा में किए गए प्रयास न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी जल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में भी सहायक होंगे।

Source- दैनिक जागरण

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