गर्मी, नमी, और प्राकृतिक आपदाओं के कारण परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा बढ़ने से महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हो रही है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में अंतरंग साथी द्वारा महिलाओं पर हिंसा का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
शोध में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि तूफान, बाढ़ और भूस्खलन जैसी जलवायु घटनाएं घरेलू हिंसा के मामलों को बढ़ावा देती हैं। इसके विपरीत, भूकंप और जंगल की आग का वैसा स्पष्ट प्रभाव देखने को नहीं मिला। अध्ययन में 1993 से 2019 तक 156 देशों के सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया गया, जिनमें महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के आंकड़े शामिल थे।
सामाजिक तंत्र पर आपदाओं का प्रभाव
शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु आपदाओं के दौरान सामाजिक सेवाओं पर भी असर पड़ता है। राहत शिविर अक्सर भीड़भाड़ वाले और असुरक्षित होते हैं, जिससे यौन हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। इस समस्या का सामना विशेष रूप से उन देशों में होता है, जहां पितृसत्तात्मक मानदंड और महिलाओं के खिलाफ हिंसा सामान्य मानी जाती है।
आर्थिक स्थिति का प्रभाव
अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन देशों का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अधिक है, वहां हिंसा के मामले अपेक्षाकृत कम होते हैं। वहीं, कम आय वाले देशों में आपदाओं के बाद हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ती हैं, क्योंकि संसाधनों की कमी और तनावपूर्ण हालात से स्थिति और बिगड़ जाती है।
समाधान के प्रयास और वैश्विक नीतियों की आवश्यकता
पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की नीतियों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को शामिल करना बेहद जरूरी है। कुछ देशों, जैसे समोआ और फिजी, ने पहले से ही अपनी जलवायु नीतियों में लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ प्रावधान शामिल किए हैं।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि आपदा प्रबंधन योजनाओं में महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीतियों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए धन आवंटित करने और लिंग-संवेदनशील कार्य योजनाएं विकसित करने की सिफारिश की गई है।
जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है। आपदाओं के समय कमजोर सामाजिक सेवाएं और असुरक्षित शरणस्थल इस समस्या को और जटिल बना देते हैं। जलवायु परिवर्तन न केवल पर्यावरणीय, बल्कि सामाजिक समस्याओं का भी जनक है। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकारों और नीति-निर्माताओं को न केवल जलवायु अनुकूलन पर, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल पर्यावरणीय नहीं है; यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर भी गहरा असर डालता है, विशेष रूप से महिलाओं पर। आपदाएं जैसे बाढ़, भूस्खलन, और तूफान न केवल बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि घरेलू तनाव और खाद्य असुरक्षा को भी बढ़ाती हैं, जिससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि होती है। आक्रामक व्यवहार, पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचे और कमजोर आपदा प्रबंधन के कारण ये समस्याएं और अधिक जटिल हो जाती हैं।
सरकारों और समाजों के लिए यह आवश्यक है कि वे आपदा प्रबंधन योजनाओं और जलवायु परिवर्तन नीतियों में लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएं। समोआ और फिजी जैसे देशों के उदाहरण दिखाते हैं कि लिंग-आधारित हिंसा से निपटने के लिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन नीतियों को कैसे एकीकृत किया जा सकता है। जलवायु संकट के समाधान के लिए प्रभावी शमन प्रयासों के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। इस दिशा में कदम बढ़ाना न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में प्रगति है बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का एक अनिवार्य हिस्सा भी है।