जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के जंगल गुरुवार को भी धधकते रहे। जिला मुख्यालय के निकटवर्ती डांडीधार, बडियागढ़, मंगणगाड, गंगाणी के जंगलों में सभी पेड़-पौधे जल चुके हैं, जबकि वरुणावत पर्वत के जंगल में भड़की आग अब करीब आठ किमी दूर महिडांडा, विष्णुवाटिका व शिखरेश्वर के जंगल तक पहुंच गई है। वन विभाग, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के दल वरुणावत के जंगल में फैली आग को बुझाने में जुटे रहे, पर अंधेरा होने के साथ ही विकट पहाड़ी क्षेत्र व संसाधनों की कमी के कारण सफलता नहीं मिली।
पर्यावरणीय प्रभाव
उत्तराखंड के वरुणावत के जंगलों में भड़की आग का पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। जंगल में लगी आग से वहां के पेड़-पौधे, वन्यजीव और जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा है। वन विभाग और अन्य एजेंसियों द्वारा आग बुझाने के प्रयासों के बावजूद, अंधेरा और संसाधनों की कमी के कारण सफलता नहीं मिल रही है। इसके परिणामस्वरूप जंगल में फैली आग और भी विकराल रूप ले रही है, जिससे अधिक क्षेत्र प्रभावित हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
इस घटना से यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब पहाड़ी क्षेत्रों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। गर्मियों के मौसम में बढ़ते तापमान और सूखे के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। जंगलों में आग लगने से पर्यावरण को न केवल तत्काल नुकसान होता है, बल्कि लंबे समय में भी इसका प्रभाव दिखाई देता है। इससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है और जलवायु पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मानव जनित कारण
उत्तरकाशी में जंगल की आग का एक कारण मानव गतिविधियों को भी माना जा सकता है। चारधाम यात्रियों की बढ़ती संख्या और जंगल में मानवीय हस्तक्षेप के कारण आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर लकड़ी और अन्य संसाधनों के लिए जंगलों का उपयोग भी आग का एक संभावित कारण हो सकता है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
जंगल की आग का प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है। इसका सीधा असर स्थानीय अर्थव्यवस्था और समाज पर भी पड़ता है। आग के कारण स्थानीय निवासी अपने घरों को खो रहे हैं, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है। चारधाम यात्रा के मार्ग में बाधा उत्पन्न होने से पर्यटन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
अगर समय पर जंगल की आग को नियंत्रित नहीं किया गया, तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वरुणावत पर्वत के जलने से भूगर्भधसाव की संभावना बढ़ गई है, जिससे इलाके में भूस्खलन का खतरा भी बढ़ सकता है। इस प्रकार, पर्यावरणीय संकट के साथ-साथ, यह एक भूगर्भीय संकट में भी परिवर्तित हो सकता है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापन और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
उत्तराखंड में वरुणावत के जंगलों में भड़की आग एक गंभीर पर्यावरणीय संकट को दर्शाती है। यह घटना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, मानव जनित कारणों और स्थानीय प्रशासन की चुनौतियों की ओर इशारा करती है। आग को नियंत्रित करने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाना आवश्यक है। इसके लिए एक व्यापक रणनीति और संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा और स्थानीय समुदाय की रक्षा की जा सके।
हालांकि, सड़क किनारे और आबादी के निकट पहुंची आग को नियंत्रित कर लिया गया है। गुरुवार दोपहर से दल फिर आग बुझाने में जुट गए। उत्तरकाशी में गंगा से लेकर यमुना घाटी तक के जंगल गत एक हफ्ते से धधक रहे हैं। मंगलवार से आग विकराल रूप धारण किए हुए है। ध्यायूस रेंज के 15 मकानों जिंदा जल चुके हैं, जबकि एक युवक झुलस गया। बुधवार रात से बृहस्पतिवार सुबह आग इतनी बढ़ गई कि यमुनोत्री हाईवे पर ध्यायूस, रौथी टाप व सिल्लदार में चारधाम यात्रियों को सुरक्षा की दृष्टि से रोकना पड़ा।
गुरुवार को भी डांडीधार, बडियागढ़, मंगणगाड, गंगाणी रेंज में तीन-तीन, मंगणगाड रेंज में चार और ध्यायूस रेंज में पांच स्थानों पर जंगल जलते रहे। सभी जगहों पर वन विभाग, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस व वन्य जीव विहार के जवान आग बुझाने में जुटे रहे।
283 करोड़ से किया गया था वरुणावत का उपचार
उत्तरकाशी शहर वरुणावत पर्वत की तलहटी में बसा हुआ है। सितंबर 2003 में पर्वत के एक हिस्से में भूगर्भधसाव शुरू हो गया। तब इस भूगर्भधसाव क्षेत्र के उपचार सहित उत्तरकाशी शहर में प्रभावित के विस्थापन, तात्कालिक सुरक्ष निर्माण आदि कार्यों में 283 करोड़ रुपये खर्च किए गए। पिछले 20 वर्षों में वरुणावत के उपचार क्षेत्र को छोड़कर अन्य स्थानों ने समय-समय पर भूस्खलन होते रहते हैं। इस वर्ष आने वाले मानसून में बड़े हिस्से को राख कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी तरह वरुणावत के जंगल जलते रहे तो इससे पर्वत के साथ भूस्खलन की आशंका बढ़ेगी।
यह खबर उत्तराखंड में बढ़ती जंगल की आग और पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करती है। जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जो क्षेत्र के पर्यावरण और जनजीवन को गंभीर खतरे में डाल रही हैं।