उत्तराखंड: बारिश और बर्फबारी की कमी से गहराया संकट

saurabh pandey
5 Min Read

उत्तराखंड में मॉनसून के बाद बारिश और बर्फबारी की भारी कमी ने किसानों को मुश्किल में डाल दिया है। राज्य के 80% से अधिक खेत असिंचित हैं और पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर हैं। बारिश न होने से किसान गेहूं, जौ और मसूर जैसी फसलों की बुवाई नहीं कर सके। टिहरी के प्रगतिशील किसान विजय जड़धारी का कहना है कि इस बार खेत बंजर रह गए, जिससे किसानों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है। छोटे किसान, जो वर्षा आधारित खेती पर निर्भर हैं, इस स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

मौसम विभाग के आंकड़े चिंताजनक

मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर और नवंबर के दौरान उत्तराखंड में सामान्य से 90% कम बारिश हुई। राज्य के अधिकांश जिलों में सूखे की स्थिति है। सिर्फ पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में थोड़ी राहत मिली है। हिमाचल प्रदेश में भी सामान्य से 97% कम बारिश दर्ज की गई, लेकिन उत्तराखंड की स्थिति और गंभीर बनी हुई है। देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह का कहना है कि मॉनसून के बाद बारिश की कमी का मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ का कमजोर प्रभाव है।

पश्चिमी विक्षोभ पर जलवायु परिवर्तन का असर

पश्चिमी विक्षोभ, जो हिमालयी क्षेत्रों में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी लाते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रहे हैं। एक शोध के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों में इनकी प्रकृति में बदलाव देखा गया है। गर्मियों में पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता बढ़ी है, जबकि सर्दियों में इनका असर कम हुआ है। इस बदलाव का नतीजा यह है कि बारिश और बर्फबारी की कमी से न केवल खेती-किसानी प्रभावित हो रही है, बल्कि ग्लेशियरों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

पर्यावरण पर संकट के बादल

बारिश और बर्फबारी की कमी का असर केवल कृषि तक सीमित नहीं है। यह पूरे पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। हिमालयी ग्लेशियरों को पर्याप्त बर्फबारी नहीं मिलने से वे तेजी से पिघल रहे हैं। इससे नदियों और जल स्रोतों का जलस्तर घट रहा है, जिससे पेयजल और सिंचाई के लिए संकट खड़ा हो रहा है। जलवायु परिवर्तन का यह प्रभाव भविष्य में और भी गंभीर हो सकता है, अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए।

समाधान की जरूरत

इस संकट से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है। जल संरक्षण के लिए पारंपरिक जल स्रोतों का पुनर्जीवन और जलाशयों का निर्माण जरूरी है। किसानों को सूखा-प्रतिरोधी फसलों की जानकारी दी जानी चाहिए। इसके साथ ही वनों का संरक्षण और नए वृक्षारोपण के जरिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

उत्तराखंड का सूखा संकट केवल किसानों का नहीं, बल्कि पूरे राज्य का मुद्दा है। यह जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार और समाज दोनों को मिलकर जलवायु संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और गहरा सकती है।

उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी की भारी कमी ने एक गंभीर संकट पैदा कर दिया है, जो न केवल किसानों की आजीविका, बल्कि पूरे पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और बदलते मौसम चक्र से यह स्पष्ट है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

यह स्थिति हमें याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन अब एक दूर की चिंता नहीं, बल्कि हमारी आज की वास्तविकता है। इसे रोकने के लिए सरकार, समाज और हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी। जल संरक्षण, पर्यावरण की देखभाल और सतत कृषि जैसे उपाय इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी हैं। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले सालों में यह संकट न केवल किसानों के लिए, बल्कि पूरे राज्य के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी जागरूकता और कार्रवाई ही इस संकट का समाधान है।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *