यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कटौती नहीं की जाती, तो अगले दो दशकों में वैश्विक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाली आबादी का अनुपात काफी बढ़ सकता है। जहां एक ओर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करके इस खतरे को 20 प्रतिशत आबादी तक सीमित किया जा सकता है, वहीं उचित कार्रवाई की कमी के परिणामस्वरूप यह आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती नहीं की जाती है, तो दुनिया की लगभग तीन चौथाई आबादी को अगले 20 वर्षों में चरम मौसम और भयंकर बारिश के परिणामस्वरूप भारी तबाही का सामना करना पड़ सकता है।
उत्सर्जन में कमी के संभावित लाभ
अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए इस शोध ने स्पष्ट किया है कि यदि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उत्सर्जन में ठोस कटौती की जाती है, तो केवल 20 प्रतिशत आबादी को ही चरम मौसम के खतरों का सामना करना पड़ेगा। वहीं, अगर उपयुक्त कार्रवाई नहीं की जाती है, तो यह आंकड़ा बढ़कर 70 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
शोधपत्र, जो नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, में दिखाया गया है कि कैसे ग्लोबल वार्मिंग सामान्य मौसम परिवर्तनों के साथ मिलकर चरम तापमान और बारिश में तेजी से बदलाव उत्पन्न कर सकता है। इस अध्ययन में बड़े जलवायु मॉडल सिमुलेशन का उपयोग करके यह दर्शाया गया है कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बड़े हिस्से, जिसमें वर्तमान जनसंख्या का 70 प्रतिशत हिस्सा शामिल है, अगले दो दशकों में तापमान और बारिश की चरम सीमाओं में बदलाव का सामना कर सकते हैं।
विषम परिस्थितियों के खतरे
तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन से लू, अत्यधिक मृत्यु दर, पारिस्थितिकी तंत्र पर तनाव, कृषि उपज में कमी, बिजली संयंत्रों की ठंडक में कठिनाई, और यातायात में रुकावट जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, बारिश की चरम सीमाएँ बाढ़, बस्तियों और फसलों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, कटाव को बढ़ा सकती हैं, और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं।
वायु प्रदूषण और चरम स्थितियाँ
शोध में यह भी पाया गया है कि वायु प्रदूषण को तेजी से कम करने से एशिया में गर्म चरम स्थितियों में तेजी आ सकती है और ग्रीष्मकालीन मॉनसून को प्रभावित कर सकती है। हालांकि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग के कुछ प्रभावों को भी छुपाता है। प्रदूषित हवा और ग्लोबल वार्मिंग मिलकर आने वाले दशकों में चरम स्थितियों में बहुत भारी बदलाव ला सकते हैं।
यह नया शोधपत्र हमें इस बात की चेतावनी देता है कि जलवायु परिवर्तन के तीव्र प्रभावों के प्रति सचेत रहना और पहले से तैयारी करना अत्यंत आवश्यक है। सबसे अच्छी स्थिति में, तेजी से होने वाले बदलाव 1.5 अरब लोगों को प्रभावित करेंगे। इससे निपटने का एकमात्र तरीका अगले एक से दो दशकों में खतरनाक चरम घटनाओं के लिए तैयार रहना है और संभावित तबाही को रोकने के उपायों को अपनाना है।
चरम तापमान और बारिश में तेज बदलाव, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं, जिनमें बाढ़, लू, कृषि उपज में कमी और बुनियादी ढांचे को नुकसान शामिल हैं। वायु प्रदूषण की भूमिका भी इस प्रक्रिया को जटिल बनाती है, जिससे चरम स्थितियों में और तेजी आ सकती है।
इन परिणामों के मद्देनज़र, तत्काल और प्रभावी जलवायु नीतियों को अपनाना और उत्सर्जन में कटौती के उपायों को लागू करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम अगले एक से दो दशकों में खतरनाक चरम घटनाओं के लिए तैयारी नहीं करते, तो हम अभूतपूर्व जलवायु संकट का सामना कर सकते हैं। इसलिए, सतत जलवायु कार्रवाई और नीतिगत सुधार अब की आवश्यकता हैं ताकि भविष्य की तबाही को टाला जा सके और मानवता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
Source- down to earth