यूनेस्को की चेतावनी: 2050 तक दुनिया के विभिन्न धरोहर स्थलों में से अधिकतर ग्लेशियर गायब हो सकते हैं

saurabh pandey
2 Min Read

ग्लेशियरों के पिघलने के प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है, जिसमें वैश्विक तापमान का बढ़ना शामिल है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 1970 के दशक से दुनिया के ग्लेशियरों की औसत मोटाई में लगभग 30 मीटर की कमी आई है। यहाँ तक कि आज भी, ग्लेशियरों का पिघलना अवश्य हो रहा है, जिससे वे धीरे-धीरे अपनी मोटाई खो रहे हैं।

यूनेस्को ने हाल ही में एक चेतावनी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि अगर हम ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित नहीं कर पाए, तो 2050 तक दुनिया के विभिन्न धरोहर स्थलों में से अधिकतर ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि यूनेस्को द्वारा संरक्षित 50 विश्व धरोहर स्थलों में 18.5 हजार से अधिक हिमनद हैं, जो पृथ्वी पर कुल ग्लेशियरों का 10 प्रतिशत है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि इन महत्वपूर्ण विरासत स्थलों को संरक्षित किया जा सके।

ग्लेशियरों के पिघलने के दुष्प्रभाव समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय कटाव में वृद्धि, बाढ़ों का अधिकतम खतरा और जैव विविधता के नुकसान शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, ग्लेशियरों के पिघलने से वैश्विक पारिस्थितिकी, मानव समाज और आर्थिक स्थिरता पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता समुद्र के स्तर के बढ़ने के लिए एक महत्वपूर्ण कारण हैं। इसलिए, ग्लोबल स्तर पर कार्रवाई की जरूरत है, जो कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने, सतत विकास को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रभावित समुदायों को सहायता प्रदान करने में मदद करेगी।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सक्रिय कार्रवाई आवश्यक है, ताकि हम समुदायों को ग्लेशियरों के पिघलने के दुष्प्रभावों से बचा सकें और इन महत्वपूर्ण विरासत स्थलों को संरक्षित रख सकें।

source and data – दैनिक जागरण

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *