विषैला भूजल और दिल्ली

saurabh pandey
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दिल्ली, जो कि देश की राजधानी है, तेजी से बढ़ती आबादी और बढ़ती पानी की मांग के संकट का सामना कर रही है। यहां पानी की वितरण व्यवस्था मुख्य रूप से टैंकरों पर निर्भर है, लेकिन ये टैंकर जहरीले भूजल स्रोतों से पानी प्राप्त कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि बीमारियों का कारण भी बन रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली का भूजल आर्सेनिक, फ्लोराइड और अन्य हानिकारक रसायनों से भरा हुआ है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।

पानी की गुणवत्ता में गिरावट

विशेषज्ञों का कहना है कि पानी में फ्लोराइड की अधिकता हड्डियों और दांतों के लिए हानिकारक है। इसके अलावा, आर्सेनिक की अधिकता त्वचा, आंखों और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनती है। ऐसे में, दिल्ली में भूजल की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। वर्तमान में, दिल्ली में भूजल की उपलब्धता लगभग 291.54 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें से 142 मिलियन क्यूबिक मीटर का उपयोग उद्योगों और पीने के लिए किया जा रहा है।

कचरे का प्रबंधन और उसके परिणाम

दिल्ली में कचरे का अनुचित प्रबंधन एक प्रमुख समस्या बन चुकी है। यहां तीन विशाल कचरे के पहाड़ हैं, जो हर दिन बढ़ते जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी यहां अवैज्ञानिक तरीके से निपटाया जा रहा है, जिससे खतरनाक रसायन धीरे-धीरे भूजल में मिल रहे हैं। लगभग 97% ई-कचरे को या तो जला दिया जाता है या तोड़कर उसके मूल्यवान धातुओं को निकाल लिया जाता है, जबकि बाकी कचरा बिना किसी सावधानी के फेंक दिया जाता है।

खेती और खाद्य सुरक्षा पर असर

भूजल के जहरीला होने के साथ ही, मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हो रही है। मिट्टी में मिल रहे ये जहरीले रसायन फसलों की वृद्धि को प्रभावित कर रहे हैं। पेड़-पौधों के जीवन चक्र में बाधा आ रही है, जिससे वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ रही है। बैटरी, कंप्यूटर और मोबाइल फोन का कचरा सबसे अधिक हानिकारक होता है। इनमें पारा, कैडमियम, और कोबाल्ट जैसे रासायनिक तत्व होते हैं, जो न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, बल्कि कृषि उत्पादों को भी प्रभावित करते हैं।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

इस दूषित जल का सेवन करके बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ रहे हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इससे न केवल आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, बल्कि लोगों की कार्य क्षमता भी प्रभावित हो रही है। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में कचरा संग्रहण और निपटान के लिए एक सख्त नीति बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण है ताकि हम अपनी मिट्टी और जल स्रोतों की रक्षा कर सकें।

दिल्ली का जल संकट एक जटिल समस्या है, जिसका समाधान जल्द से जल्द किया जाना आवश्यक है। इसके लिए न केवल सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है, बल्कि नागरिकों को भी इस दिशा में जागरूक होना होगा। जल, मिट्टी और हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण बना सकें।

दिल्ली का जल संकट केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि यह स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है। बढ़ती जनसंख्या, दूषित जल स्रोतों, और कचरे के अवैज्ञानिक प्रबंधन ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है।

यदि इसे हल नहीं किया गया, तो इससे न केवल लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि यह सामाजिक असमानताओं और आर्थिक बोझ को भी बढ़ाएगा। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार, स्थानीय प्रशासन, और नागरिक मिलकर काम करें। कचरे के उचित प्रबंधन, जल पुनर्चक्रण, और जैविक खेती को बढ़ावा देने से हम जल संकट की दिशा में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

आखिरकार, एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने जल और पर्यावरण संसाधनों का संरक्षण करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन सुनिश्चित किया जा सके। इस दिशा में कदम उठाना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता भी है।

Source- dainik jagran

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