भारत में एक बार फिर से चीतों की गूंज सुनाई देने वाली है। साल 2024 में चीतों की दो बड़ी खेप देश में आने की संभावना है, जिससे भारत के वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को एक नई दिशा मिलेगी। चीते, जिन्हें एक समय पर भारतीय जंगलों का हिस्सा माना जाता था, अब देश में फिर से बसने के लिए तैयार हैं। दक्षिण अफ्रीका और केन्या से चीते लाने की योजना अंतिम चरण में है, और इसके जरिए देश में चीतों की संख्या में वृद्धि का महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है।
चीतों की खेप: कहां से आएंगे और कहां जाएंगे
साउथ अफ्रीका और केन्या से आने वाली चीतों की इन खेपों में लगभग 8-10 चीते शामिल होंगे। इनमें से एक खेप को मध्य प्रदेश के गांधी सागर अभयारण्य में रखा जाएगा, जबकि दूसरी खेप गुजरात के कच्छ में स्थित बन्नी अभयारण्य में भेजी जाएगी। गुजरात में बन्नी अभयारण्य को विशेष रूप से चीतों के प्रजनन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां इनका सफल प्रजनन किया जाएगा। यह कदम चीतों की संख्या बढ़ाने और उनकी अनुकूलन क्षमता को भारतीय जलवायु के अनुसार ढालने में मदद करेगा।
कुनो की सफलता और आगे की योजनाएं
चीतों की पुनर्स्थापना के प्रयासों में मध्य प्रदेश के कुनो अभयारण्य ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुनो में 2022 में लाए गए चीतों के शावकों में से 17 में से 12 को बचाने में सफलता मिली है, जो कि वैश्विक औसत की तुलना में बहुत बेहतर परिणाम है। वैश्विक स्तर पर, चीतों के शावकों की मृत्यु दर काफी अधिक होती है, और केवल 10% शावक ही जीवित रह पाते हैं। कुनो की इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि भारत में चीतों की संख्या को स्थिर करना संभव है।
अब, इसी सफलता को ध्यान में रखते हुए, देश के अन्य हिस्सों में चीतों को बसाने की योजना पर काम किया जा रहा है। गांधी सागर और बन्नी अभयारण्य में चीतों को स्थानांतरित करने से देश में उनके लिए नए आवास बनाए जाएंगे, जिससे उनके संरक्षण में और भी बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।
परियोजना की चुनौतियाँ
हालांकि चीतों की इस वापसी को लेकर उम्मीदें काफी हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी चुनौती इन चीतों के लिए पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आवास की व्यवस्था करना है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, चीतों की संख्या को स्थिर करने के लिए न्यूनतम 100 चीतों की आवश्यकता है, जिनमें से 70% वयस्क और 30% शावक होने चाहिए। इसके अलावा, इनके लिए बड़े और सुरक्षित आवासों की जरूरत है, जहां वे स्वतंत्र रूप से शिकार कर सकें और प्रजनन कर सकें।
गुजरात के बन्नी अभयारण्य को चीतों के प्रजनन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए अब भी पर्याप्त संसाधनों और बुनियादी ढांचे की जरूरत है। हालांकि सरकार और वन्यजीव संरक्षण संस्थान इन चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, फिर भी इस परियोजना की सफलता बहुत हद तक इन बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर करेगी।
भविष्य की संभावनाएं
चीतों की यह पहल भारत में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है। भारतीय जलवायु में पैदा होने और यहां अनुकूलन होने वाले चीते न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करेंगे, बल्कि वैश्विक वन्यजीव संरक्षण के लिए भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करेंगे।
इस परियोजना के सफल होने पर भारत में चीतों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी और यह वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक उत्साहजनक समाचार होगा। आने वाले कुछ वर्षों में, भारत चीतों का एक प्रमुख आवास बन सकता है, जहां ये अद्भुत जीव स्वतंत्र रूप से विचरण कर सकेंगे।
भारत में चीतों की वापसी देश के वन्यजीव संरक्षण के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। दक्षिण अफ्रीका और केन्या से चीते लाने की इस पहल से न केवल चीतों की संख्या में वृद्धि होगी, बल्कि उनके संरक्षण के लिए देश की प्रतिबद्धता भी मजबूत होगी। यह परियोजना भारतीय वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो आने वाले समय में न केवल देश की जैव विविधता को समृद्ध करेगा, बल्कि वन्यजीवों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाएगा।