केरल के वायनाड जिले में अचानक भारी बारिश और भूस्खलन से कई गांवों का अस्तित्व मिट गया है और करीब दो सौ लोगों की मौत हो गई है। मलबे में अभी भी कई लोगों के दबे होने की आशंका है। इसका मुख्य कारण धरती के बढ़ते तापमान के कारण अरब सागर के गर्म पानी से उत्पन्न घने बादल हैं। 2020 में केरल में जलवायु परिवर्तन और तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि की घटनाओं को नजरअंदाज कर दिया गया था। इसके बाद, केरल की जैव विविधता और नदियों का जलस्तर प्रभावित हुआ था, और वायनाड में भी जमीन में लंबी दरारें दिखाई दीं। इसी तरह की स्थिति हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी देखी जा रही है।
धरती की सतह को सूर्य की किरणों से गर्मी मिलती है, जो वायुमंडल से होकर गुजरती हैं और वहां से परावर्तित होकर वापस लौट जाती हैं। ग्रीनहाउस गैसें इस प्राकृतिक आवरण को बढ़ाकर पृथ्वी को गर्म रखती हैं। हालांकि, ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा इस आवरण को और मोटा कर देती है, जिससे धरती का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है। यदि उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा, तो तापमान तीन से आठ डिग्री तक बढ़ सकता है, जिसके गंभीर परिणाम होंगे जैसे भीषण गर्मी, फसलों की पैदावार में कमी, और समुद्र स्तर का बढ़ना।
1970 के मुकाबले आज धरती का तापमान तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है। इसके मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, वाहनों से निकलने वाला धुआं, और जंगलों में आग हैं। कश्मीर में भी इस बार गर्मी सामान्य से अधिक रही है और सर्दियों में बर्फबारी की कमी हो गई है, जिससे पर्यटन, कृषि और पनबिजली परियोजनाओं पर असर पड़ा है। पंजाब में भी बारिश की कमी और अत्यधिक गर्मी के कारण बुआई प्रभावित हो रही है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, यदि धरती का तापमान बढ़ता है, तो इससे किसानों की आय में कमी हो सकती है।
धरती के बढ़ते तापमान ने वैश्विक जलवायु में गंभीर बदलाव ला दिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारी बारिश, भूस्खलन, और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं। केरल के वायनाड में हाल की भयानक घटनाएँ और अन्य राज्यों में देखे जा रहे प्रभाव इस बात का प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन और तापमान में वृद्धि के कारण, पृथ्वी का वातावरण अत्यधिक गर्म हो रहा है, जिससे फसलों की पैदावार, जलवायु, और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भविष्य में, इस संकट से निपटने के लिए अधिक सतर्कता और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सके और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके।
source – दैनिक जागरण