प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का असर: संजय झील में प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या और प्रजातियों में बदलाव

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन का असर केवल मौसम और पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि जलवायु पर आधारित प्रजातियों पर भी साफ तौर पर दिखने लगा है। वेटलैंड्स, जो जल पक्षियों के लिए प्राकृतिक आवास होते हैं, अब इस परिवर्तन से जूझ रहे हैं। राजधानी दिल्ली में स्थित संजय झील, जो एक मानव निर्मित आर्द्रभूमि है, पिछले कुछ सालों से प्रवासी जल पक्षियों के लिए आकर्षण का केंद्र नहीं बन पाई है।

प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या

संजय झील, जो पूर्वी दिल्ली के 17 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है, में प्रवासी पक्षियों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। पिछले दो सालों में, इस झील में पक्षियों की संख्या और प्रजातियों में लगातार गिरावट आई है। हालांकि, इस साल की तुलना में पिछले साल पक्षियों की संख्या और प्रजातियों में कुछ वृद्धि देखने को मिली है, फिर भी जलवायु परिवर्तन और मानसून में देरी के कारण इसका प्रभाव इन पक्षियों पर स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है।

वेटलैंड्स और जलवायु परिवर्तनों के बीच संबंध को देखते हुए, पक्षी विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया है कि मानसून की देरी और सर्दियों के आगमन में उतार-चढ़ाव ने इन पक्षियों के आवास और प्रजनन प्रक्रिया को प्रभावित किया है। इस साल नॉर्दर्न पिंटेल, गडवाल, कॉमन सैंडपाइपर, कॉमन रेडशैंक, व्हाइट वैगटेल जैसे पक्षियों की कुछ प्रजातियां सूखती हुई झीलों में पहुंची हैं।

एशियन वॉटर बर्ड सेंसस (AWC) 2025: आंकड़े बताते हैं जलवायु परिवर्तन का असर

AWC 2025 के आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। इस साल संजय झील में 111 प्रवासी जल पक्षियों की संख्या दर्ज की गई, जिसमें 15 विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं। इन प्रजातियों में आठ स्थानीय और सात प्रवासी पक्षी शामिल हैं। यह आंकड़ा वेटलैंड्स में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है। पिछली बार, 2024 में कुल 27 पक्षी प्रजातियां आई थीं, जिनमें से छह प्रजातियां यहां देखी गई थीं। इसमें पाँच स्थानीय और एक प्रवासी प्रजाति थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रजाति विविधता में कमी आई है, जो पारिस्थितिकी के लिए चिंता का विषय है। कई आर्द्रभूमियों में पक्षियों की प्रजातियां कम होती जा रही हैं, जो इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का संकेत है।

संजय झील का ऐतिहासिक महत्व और मानवीय हस्तक्षेप

संजय झील, जो कभी जल पक्षियों का प्राकृतिक आवास हुआ करती थी, अब एक कृत्रिम जलाशय में बदल चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह झील पहले हजारों जल पक्षियों का आश्रय स्थल हुआ करती थी, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप और विकास कार्यों के कारण इसका प्राकृतिक रूप खत्म हो गया। अब यह झील पूरी तरह से पर्यटकों के लिए बनाई गई एक मनोरंजन स्थल बन चुकी है, जिसमें पक्षियों के लिए उचित आवास का अभाव है।

संजय झील का एक हिस्सा पहले डीडीए द्वारा विकसित किया गया था, लेकिन अब यह पक्षियों के लिए उपयुक्त नहीं रहा। कुछ प्रवासी पक्षी यहां आते हैं, लेकिन वे लंबे समय तक यहां नहीं रुक पाते। यह झील पक्षियों के लिए स्वाभाविक वेटलैंड आवास के रूप में अपनी भूमिका नहीं निभा पा रही है, जिसके कारण पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है।

वेटलैंड्स की सुरक्षा और संरक्षण का महत्व

टीके रॉय, जो एक पारिस्थितिकीविद् और पक्षी विज्ञानी हैं, का कहना है कि संजय झील जैसे आर्द्रभूमि क्षेत्रों में पर्यावरणीय दबाव और मानवीय गतिविधियों के कारण जल पक्षियों की संख्या में गिरावट आई है। उन्होंने यह भी कहा कि, “यदि इन क्षेत्रों को संरक्षित और सुरक्षित नहीं किया गया, तो हम जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के कारण बहुत से पक्षियों को खो सकते हैं।”

वर्तमान में, संजय झील में पक्षियों की कई प्रजातियां केवल उन नियंत्रित क्षेत्रों और निजी क्षेत्रों के पास देखी जा सकती हैं, जहां मानव हस्तक्षेप न्यूनतम है। इन क्षेत्रों में वेटलैंड्स के संरक्षण और सुरक्षा के उपायों की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन और मानवीय प्रभाव से बचने के लिए जल पक्षियों को बेहतर आवास मिल सके।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वेटलैंड्स और जल पक्षियों के आवास पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। संजय झील जैसी स्थानों में प्रवासी पक्षियों की संख्या में गिरावट और प्रजातियों में कमी इसका प्रमुख उदाहरण है। इस संकट को दूर करने के लिए, वेटलैंड्स के संरक्षण और सुरक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, ताकि इन पक्षियों के प्राकृतिक आवास को बचाया जा सके और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सके।

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