दिल्ली में बढ़ते कूड़े के पहाड़ अब सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक दांवपेंच का भी शिकार हो चुके हैं। ओखला, भलस्वा और गाजीपुर की लैंडफिल साइट्स में निस्तारण कार्य की डेडलाइन कई बार बदली जा चुकी है, और फिलहाल दिसंबर 2028 तक का समय निर्धारित किया गया है। लेकिन स्थायी समिति के चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच जाने के कारण इस कार्य में रुकावट आई है। इसके परिणामस्वरूप, कचरे के पहाड़ खत्म करने की योजनाओं में लगातार देरी हो रही है।
धीमा निस्तारण और कूड़े का बढ़ता बोझ
लैंडफिल साइट्स पर कूड़े का निस्तारण बेहद धीमी गति से हो रहा है। गाजीपुर लैंडफिल साइट पर जहाँ अब तक 30 लाख मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण होना चाहिए था, वहाँ केवल 12 लाख मीट्रिक टन कचरा ही निस्तारित हुआ है। इसी तरह, भलस्वा और ओखला की साइट्स पर भी निस्तारण कार्य समय के अनुसार नहीं हो रहा है।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने इस देरी पर चिंता व्यक्त की है, लेकिन फिलहाल निस्तारण का कोई प्रभावी तरीका नजर नहीं आ रहा है।
वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट की देरी
दिल्ली नगर निगम ने नरेला-बवाना और गाजीपुर में नए वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट लगाने की योजना बनाई थी, जिनकी कचरा निपटान क्षमता 3000 टन और 2000 टन प्रतिदिन थी। लेकिन स्थायी समिति के गठन में देरी होने के कारण इन परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिल पाई। अब यह प्लांट 2027 तक स्थापित किए जाने की संभावना है।
भविष्य की चुनौतियाँ
कूड़े के पहाड़ों को समय पर खत्म करने के लिए दिल्ली सरकार और निगम के बीच समन्वय की कमी और राजनीतिक अड़चनें बड़ी चुनौतियाँ बनकर सामने आई हैं। जब तक इन परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलती और निस्तारण कार्य तेज़ी से नहीं होता, तब तक दिसंबर 2028 की डेडलाइन भी संशय में है।
दिल्ली के लैंडफिल साइट्स का कचरा निस्तारण राजनीतिक दांवपेंच और प्रशासनिक देरी के कारण अटक गया है। दिल्ली नगर निगम को न सिर्फ स्थायी समिति का गठन कर परियोजनाओं को मंजूरी देनी होगी, बल्कि कचरे से ऊर्जा बनाने के प्लांट्स को भी शीघ्र स्थापित करना होगा ताकि दिल्ली को कूड़े के पहाड़ों से निजात मिल सके।
दिल्ली के लैंडफिल साइट्स पर कूड़े का निस्तारण राजनीतिक और प्रशासनिक अड़चनों के कारण लगातार बाधित हो रहा है। डेडलाइन कई बार बदली जा चुकी है, और वर्तमान में दिसंबर 2028 की समय-सीमा भी पूरी होती नजर नहीं आ रही। जब तक स्थायी समिति का गठन नहीं होता और वेस्ट-टू-एनर्जी परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलती, तब तक निस्तारण कार्य धीमा ही रहेगा। इसके लिए आवश्यक है कि प्रशासन और राजनीतिक दल एकजुट होकर ठोस कदम उठाएं, ताकि दिल्ली को कूड़े के पहाड़ों से छुटकारा मिल सके और पर्यावरणीय स्थिति सुधर सके।