इस साल देश में मौसम का मिजाज पूरी तरह बदल गया, जिसने आम जनजीवन को प्रभावित किया। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है, जिसके कारण एक ओर रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई, वहीं दूसरी ओर न्यूनतम तापमान में भी लगातार वृद्धि दर्ज की गई। यह अस्थिरता आने वाले समय में और गंभीर हो सकती है, जिससे देश की पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिति पर बड़ा असर पड़ने की आशंका है।
अल-नीनो के प्रभाव के बावजूद भारी बारिश
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, इस साल मानसून के दौरान 1 जून से 30 सितंबर तक 934.8 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो औसत 868.6 मिमी से अधिक है। हालांकि मानसून की शुरुआत धीमी रही और अल-नीनो के प्रभाव से जून में 11% कम वर्षा दर्ज की गई, लेकिन अगस्त और सितंबर में स्थिति बदल गई। इन महीनों में पिछले सालों के मुकाबले सबसे अधिक बारिश हुई, जिससे कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए।
विशेष रूप से उत्तराखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बारिश ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। IMD के आंकड़ों के अनुसार, 753 से अधिक स्थानों पर अत्यधिक भारी वर्षा दर्ज की गई, जिससे कई नदियों का जलस्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया।
तापमान में असामान्य वृद्धि: दिन-रात गर्मी का असर
बारिश के बावजूद देश के कई हिस्सों में रात का तापमान सामान्य से अधिक बना रहा। वैज्ञानिकों ने इसे जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत बताया है। उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत के कई शहरों में रातें असामान्य रूप से गर्म रहीं, जबकि पूर्वोत्तर भारत में न्यूनतम तापमान के नए रिकॉर्ड बने। इससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, जो विशेष रूप से बुजुर्गों और कमजोर स्वास्थ्य वाले लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण न केवल दिन का तापमान बढ़ रहा है, बल्कि रातों में भी गर्मी का असर खत्म नहीं हो रहा है। यह स्थिति मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, जिससे हृदय और सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
प्रदूषण और बाढ़ का अभाव: यमुना में गंदगी की समस्या बढ़ी
दिल्ली की यमुना नदी में इस साल प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार यमुना में बाढ़ न आने से नदी की प्राकृतिक सफाई प्रक्रिया बाधित हो गई, जिससे जल प्रदूषण बढ़ गया है। आमतौर पर बाढ़ का पानी नदी में मौजूद गंदगी को बहाकर ले जाता है, लेकिन इस साल ऐसा न होने से नदी में झाग और रासायनिक कचरे की समस्या गहराती जा रही है।
प्रदूषण बढ़ने का असर केवल यमुना तक सीमित नहीं है। बढ़ते तापमान और अत्यधिक वर्षा से देश के कई हिस्सों में जलाशयों और नदियों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
बारिश का असमान वितरण और खेती पर प्रभाव
इस साल मानसून के दौरान 729 जिलों में बारिश दर्ज की गई, लेकिन इसका वितरण असमान रहा:
- 340 जिलों में सामान्य वर्षा
- 158 जिलों में औसत से अधिक बारिश
- 167 जिलों में सामान्य से कम बारिश
- 11 जिलों में अत्यधिक कम वर्षा
इस असमानता ने कृषि उत्पादन को भी प्रभावित किया। जिन इलाकों में अधिक बारिश हुई, वहां फसलों को नुकसान हुआ, जबकि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बन गई। किसानों को बढ़ती अनिश्चितता से जूझना पड़ रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ने की आशंका है।
भविष्य की चुनौतियां और विशेषज्ञों की चेतावनी
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर जलवायु परिवर्तन पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में अत्यधिक वर्षा, सूखा और तापमान में वृद्धि जैसी समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए पर्यावरणीय अनुकूलन नीतियों को तेजी से अपनाने की जरूरत है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को हरित ऊर्जा और नवीकरणीय संसाधनों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके। इसके अलावा, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण पर ध्यान देना भी अनिवार्य है।
सतर्कता और सामूहिक प्रयास जरूरी
इस साल का मौसम भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। रिकॉर्ड बारिश, बढ़ता तापमान और प्रदूषण की समस्याएं केवल शुरुआत हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण, और सतत विकास के उपायों को प्राथमिकता देकर ही इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
अगर आज ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में हालात और खराब हो सकते हैं। सतर्कता और सामूहिक प्रयास से ही हम आने वाले खतरों से बच सकते हैं और एक सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।