समुद्री बर्फ धरती को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने की अपनी शक्ति खो रही है, जिससे वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है। मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा 1980 से 2023 तक के उपग्रह डेटा के अध्ययन से पता चला है कि समुद्री बर्फ की ठंडक देने की क्षमता में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके परिणामस्वरूप धरती और तेजी से गर्म हो रही है।
शोध के मुताबिक, 2016 से अंटार्कटिक में हो रहे बदलावों ने समुद्री बर्फ को काफी नुकसान पहुँचाया है, जिसके चलते तापमान में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि आर्कटिक ने अपनी वायुमंडल को ठंडा रखने की क्षमता का 21 से 27 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है।
समुद्री बर्फ की पिघलने की प्रक्रिया और सूर्य के प्रकाश के कम परावर्तन के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ के ठंडक देने की शक्ति में लगभग दोगुनी कमी आई है। बर्फ की परत के गायब होने और बची हुई बर्फ के कम परावर्तन के कारण समुद्र के पानी की लवणता और तापमान में बदलाव आ रहा है, जिससे समुद्री परिसंचरण प्रभावित हो रहा है।
मुख्य बिंदु:
- समुद्री बर्फ की ठंडक देने की शक्ति में 15% की कमी।
- 2016 से अंटार्कटिक में तापमान में 40% की वृद्धि।
- आर्कटिक ने अपनी ठंडक देने की क्षमता का 21-27% खोया।
- बर्फ के पिघलने से समुद्र के पानी की लवणता और तापमान प्रभावित हो रहे हैं।
समुद्री बर्फ की ठंडक देने की क्षमता में 1980 के बाद 15 प्रतिशत की महत्वपूर्ण गिरावट आ चुकी है, जिससे धरती की गर्मी में तेजी आई है। मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्री बर्फ का पिघलना और सूर्य के प्रकाश का कम परावर्तन आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में वायुमंडल को ठंडा रखने की शक्ति में दोगुनी कमी का कारण बन रहा है। अंटार्कटिक में हालिया बदलावों के चलते तापमान में 40 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है, और आर्कटिक ने अपनी ठंडक देने की क्षमता का 21-27 प्रतिशत हिस्सा खो दिया है।
यह स्थिति समुद्री पानी की लवणता और तापमान में परिवर्तन के माध्यम से समुद्री परिसंचरण को प्रभावित कर रही है, जो वैश्विक जलवायु प्रणाली पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। इस परिदृश्य को देखते हुए, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने और समुद्री बर्फ की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
source and data – अमर उजाला