मानसून की अवधि में कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में नदियों को अविरल बनाए रखने की चुनौती

saurabh pandey
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भारत में मानसून की अवधि में कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों की अविरलता को बनाए रखना एक प्रमुख चुनौती बन गया है। केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जल संसाधनों की महत्ता को रेखांकित करते हुए नदियों को बचाने और भूजल स्तर सुधारने की आवश्यकता पर बल दिया। राष्ट्रीय नदी संगम के कार्यक्रम में मंत्री ने कहा कि जल स्रोतों का संरक्षण और भूजल स्तर का पुनरुत्थान, नदियों की स्वच्छता और उनकी निरंतरता के लिए अत्यावश्यक हैं।

मानसून की अवधि घटने से बढ़ी चुनौती

शेखावत के अनुसार, भारत की अधिकांश नदियाँ मानसून पर निर्भर हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की अवधि घटने लगी है। उन्होंने बताया कि पानी की कमी, स्वच्छता, और जल संरक्षण की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार जल संरक्षण के विभिन्न प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री के जल आंदोलन को जन आंदोलन में बदलने से जागरूकता बढ़ी है और लोगों को जल संरक्षण के महत्व का बोध हुआ है।

नमामि गंगे और जल संरक्षण में प्रगति

उन्होंने नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा को पांच वर्षों में प्रदूषण-मुक्त बनाने के प्रयासों का उदाहरण देते हुए बताया कि, “पांच सालों में गंगा को स्वच्छ कर दिया गया, जबकि ब्रिटेन और स्वीडन जैसे विकसित देशों में इसे प्रदूषण मुक्त करने में दशकों का समय लगा।” नमामि गंगे परियोजना को जल संरक्षण और स्वच्छता में सफल प्रयास माना जा रहा है, जिसके कारण देश की अन्य नदियों को भी स्वच्छ बनाने की दिशा में काम हो रहा है।

जल संरक्षण में सरकार की योजनाएँ

मंत्री शेखावत ने यह भी जानकारी दी कि जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए देश में 1.5 लाख से अधिक अमृत सरोवर बनाए गए हैं। भारत के 48 लाख जल स्रोतों का डेटा अब ऑनलाइन उपलब्ध है, जो जल संरक्षण के प्रयासों को प्रभावी बनाने में सहायक साबित हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में एशिया का सबसे बड़ा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जल्द ही शुरू किया जाएगा, जिससे यमुना में अनुपचारित सीवेज गिरने की समस्या का समाधान होगा।

नदी संरक्षण में जन भागीदारी की आवश्यकता

कार्यक्रम में ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने यमुना की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “यमुना आज डायलिसिस पर है। इसे बचाने के लिए हम सभी को योगदान देना होगा।” इसके अतिरिक्त, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने भारतीय परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने की आवश्यकता को रेखांकित किया और बताया कि नदियों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता फैलाना अत्यावश्यक है।

युवा पीढ़ी को जोड़ने की पहल

भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमनकांत ने सुझाव दिया कि नदियों के बारे में युवाओं को जागरूक करने और विशेषज्ञ तैयार करने के लिए “नदी विश्वविद्यालय” की स्थापना की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि नदी संरक्षण के लिए युवाओं में शिक्षा और जागरूकता का प्रसार बेहद आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ नदियों को प्रदूषण और जल संकट से बचाने के लिए प्रभावी कदम उठा सकें।

यह कार्यक्रम नदियों के संरक्षण में सरकार और समाज की साझा जिम्मेदारी को उजागर करता है। सरकार के प्रयासों के साथ-साथ आम नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना होगा। जल संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाकर, समाज और सरकार नदियों को अविरल और स्वच्छ बना सकते हैं।

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