पराली जलाने से जुड़े वायु प्रदूषण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। जैसे ही सर्दियों का मौसम करीब आता है, दिल्ली-एनसीआर की हवा में घुटन और धुंध की स्थिति पैदा हो जाती है, जिसका मुख्य कारण पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाना होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बार इस गंभीर समस्या पर सख्ती दिखाते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से जवाब तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि पराली जलाने पर रोक के बावजूद इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं और क्या कार्रवाई की जा रही है?
पराली जलाना: समस्या की जड़
हर साल खरीफ की फसल की कटाई के बाद पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं। पराली को खेत में छोड़ने से अगली फसल की बुवाई में देरी हो जाती है और खेत की तैयारी में अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए किसान इसे जलाने का सबसे आसान और सस्ता उपाय मानते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया से निकलने वाला धुआं और जहरीली गैसें दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा देती हैं। इसका असर न सिर्फ स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) भी गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने अदालत को बताया कि कई इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं शुरू हो चुकी हैं, जो आने वाले समय में और बढ़ने की आशंका है। इस पर अदालत ने केंद्र सरकार और सीएक्यूएम को निर्देश दिया कि वे शुक्रवार तक इस मामले में जवाब दें। कोर्ट ने पूछा कि जब पराली जलाने पर रोक है, तो आखिर किस तरह से इसे लागू किया जा रहा है और इसका उल्लंघन करने वालों पर क्या कार्रवाई हो रही है।
प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ता संकट
दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र में हर साल अक्टूबर और नवंबर में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ जाता है। पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से उठने वाले धुएं के कारण यहां हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। दिल्ली में सांस लेना मुश्किल हो जाता है और लोग स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं। विशेष रूप से बुजुर्ग, बच्चे और अस्थमा के मरीज इस बढ़ते प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
क्या है वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम)?
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की स्थापना 2020 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना है। आयोग के तहत प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों पर निगरानी रखी जाती है और आवश्यक कदम उठाए जाते हैं। पराली जलाने के मुद्दे पर भी यह आयोग जिम्मेदार है। अब सवाल उठता है कि जब इस आयोग की जिम्मेदारी है, तो पराली जलाने की घटनाओं को क्यों नहीं रोका जा रहा?
समस्या का समाधान क्या है?
इस समस्या से निपटने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है। अल्पकालिक उपायों में पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई और किसानों को वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराना शामिल है, ताकि वे पराली जलाने के बजाय इसे खेत में सड़ाकर खाद बना सकें। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर किसानों को जागरूक करने और उन्हें पराली के निस्तारण के लिए मशीनरी उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
दीर्घकालिक समाधान के लिए सरकार को कृषि प्रौद्योगिकी में सुधार लाने और किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के आधुनिक तरीकों से अवगत कराने की जरूरत है। इसके अलावा, पराली से जैविक खाद, ऊर्जा उत्पादन और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने की दिशा में भी प्रयास किए जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई पर निगाहें
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगे गए जवाब के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और केंद्र सरकार इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाते हैं। फिलहाल, दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र के लोग इस उम्मीद में हैं कि इस बार सर्दियों में उन्हें प्रदूषण की समस्या से कुछ राहत मिलेगी।
पराली जलाने की समस्या का समाधान आसान नहीं है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना भी घातक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए एक बार फिर सरकार और संबंधित एजेंसियों को चेताया है। अब देखना होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाते हैं या नहीं। किसानों को पराली जलाने के विकल्प दिए बिना इसे रोकना संभव नहीं है, इसलिए सरकार और आयोग को मिलकर इस दिशा में सार्थक प्रयास करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार मिल सके।
पराली जलाने से उत्पन्न वायु प्रदूषण की समस्या एक गंभीर चुनौती है, जो हर साल दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर को खतरनाक स्थिति में पहुंचा देती है। सुप्रीम कोर्ट का इस मुद्दे पर सख्त रुख इस बात का संकेत है कि अब इसे और अधिक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को तुरंत कार्रवाई करते हुए पराली जलाने के विकल्पों पर जोर देना होगा, जिससे किसानों की समस्याओं का समाधान हो सके और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सके। दीर्घकालिक समाधान और सटीक नीति निर्माण के जरिए ही इस संकट का स्थायी समाधान संभव है।
Source- dainik jagran