सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि पराली जलाने की समस्या से स्थायी समाधान निकालने के लिए प्रभावी रणनीति बनानी होगी। पिछली सुनवाई में भी अदालत ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए संबंधित राज्यों को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पराली जलाने की घटनाएं न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि पूरे उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं।
तीन राज्यों के सहयोग से वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की पहल
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को निर्देश दिया कि वह पराली प्रबंधन और फसल विविधीकरण को लेकर उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के साथ बैठक करे। अदालत ने इस विषय पर मार्च के अंतिम सप्ताह में फिर से सुनवाई करने का निर्णय लिया है।
अदालत में रखे गए सुझाव
1. कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने कई सुझाव दिए। इनमें प्रमुख रूप से:
2. फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना ताकि किसान धान के विकल्प में अन्य फसलें उगा सकें।
3. फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रभावी तकनीकों को अपनाना।
4. किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए आर्थिक सहायता और जागरूकता अभियान चलाना।
5. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने भी इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
आयोग की बैठक और अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि आयोग 17 मार्च तक संबंधित राज्यों के अधिकारियों के साथ बैठक कर अपनी कार्य योजना को अंतिम रूप दे। इसके बाद मार्च के अंतिम सप्ताह में अदालत इन सुझावों पर विचार करेगी और आवश्यक निर्देश जारी करेगी।
इसके अतिरिक्त, बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण निर्माण कार्य बंद होने से प्रभावित मजदूरों को मुआवजा न मिलने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के मुख्य सचिवों को 28 फरवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में पेश होने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मजदूरों को मुआवजा दिए जाने के उसके निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
सरकारों को कड़े कदम उठाने की जरूरत
पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने होंगे। किसान संगठनों, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के साथ मिलकर एक दीर्घकालिक समाधान तैयार करने की आवश्यकता है ताकि दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार हो सके।