सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अध्यक्ष और उपराज्यपाल वीके सक्सेना को राष्ट्रीय राजधानी के रिज क्षेत्र में पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर 22 अक्टूबर तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। यह आदेश उस अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें डीडीए और अन्य अधिकारियों पर पेड़ों की कटाई को लेकर न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप है।
अवमानना मामले की पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पार्टीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं, ने इस मुद्दे पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। अदालत ने पूछा कि क्या 3 फरवरी को DDA अध्यक्ष के साथ पेड़ों को काटने की अनुमति के संबंध में कोई चर्चा हुई थी। यदि हां, तो यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए कि अदालत की अनुमति प्राप्त की गई थी।
बिना अनुमति पेड़ों की कटाई
अदालत ने स्पष्ट किया कि पेड़ों की कटाई 16 फरवरी को शुरू हो गई थी, जबकि इस संबंध में याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। यह मामला उठाने पर पीठ ने जानना चाहा कि क्या अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है, जिन्होंने जानबूझकर इस तथ्य को अदालत से छिपाया।
DDA उपाध्यक्ष पर आरोप
इससे पहले, न्यायालय ने DDA उपाध्यक्ष सुभाषिश पांडा के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने छतरपुर क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की अनुमति दी। पीठ ने पांडा के द्वारा प्रस्तुत भ्रामक हलफनामे पर नाराजगी व्यक्त की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि क्या दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई शुरू की गई है। अदालत ने 22 अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिससे यह स्पष्ट होगा कि प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही को दर्शाता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में इस प्रकार के उल्लंघन को रोका जा सके। यह प्रकरण दिल्ली की पर्यावरण नीति और स्थानीय प्रशासन की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।