सूखे सरोवर: अमृत सरोवर योजना की उदासीनता पर उठे सवाल
अमृत सरोवर एकमात्र ऐसी योजना है जो गांवों में जल संकट दूर कर सकती है, लेकिन ग्राम पंचायतें ही इसको लेकर उदासीन बनी रहीं।उत्तर प्रदेश में तेजी से नीचे जा रहे भूजल स्तर को ऊपर लाने का एकमात्र उपाय यही है कि तालाबों एवं अन्य जलाशयों में पानी भरा जाए।
इससे न सिर्फ फसलों की सिंचाई के लिए पानी की कमी का संकट दूर होगा, बल्कि पशु-पक्षियों और जलजीवों को भी राहत मिलेगी। इसी उद्देश्य से राज्य में बड़े जोर-शोर से और कई विभागों के सामूहिक प्रयास से अमृत सरोवर योजना की शुरुआत हुई थी। अब हाल यह है कि तालाबों में कहीं भी पानी नहीं दिख रहा।

लोगों के भविष्य और जीवन से जुड़ी कोई योजना यदि अपने उद्देश्य में असफल रहती है तो उस पर किया गया पूरा खर्च निरर्थक है। विडंबना यह है कि गांव के लोगों ने भी इस योजना का महत्व नहीं समझा, जिनका पूरा जीवन ही तालाबों के पानी पर निर्भर है, चाहे वह खेती के लिए हो या फिर पशुओं का पालन। अमृत सरोवर एकमात्र ऐसी योजना है जो गांवों में जल संकट दूर कर सकती है, लेकिन ग्राम पंचायतें ही इसको लेकर उदासीन बनी रहीं, जबकि अधिकांश स्थानों पर इनके संचालन की जिम्मेदारी उन्हीं की थी।
केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना 2022 में शुरू की थी और अगस्त 2023 में यह पूरे देश में समाप्त हो गई, लेकिन इसके बहुद्देश्यीय महत्व को देखते हुए राज्य सरकार ने इसे इस साल 15 अगस्त तक चलाने का निर्णय लिया है। इसके तहत प्रदेश में 16,909 सरोवर या तो निर्मित किए गए या पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया, जो कि देश में सर्वाधिक है।

लेकिन ऐसे तालाबों का उपयोग ही क्या जिनमें पानी न हो! ग्रामीणों को भी जागरूकता का परिचय देते हुए दबाव बनाना चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनके हितों से जुड़ा है।
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