बहराइच के गन्ना खेत: वन्यजीवों के लिए बन रहे ब्रीडिंग ग्राउंड

saurabh pandey
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उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में गन्ने की खेती पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ी है, जिससे वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ने लगी हैं। पहले जहां गन्ने की खेती महज 3% क्षेत्र में होती थी, वहीं अब यह 35% तक पहुंच गई है। खासकर महसी क्षेत्र, जो गंगा की सहायक नदी घाघरा के किनारे स्थित है, बाढ़ और आबादी के दबाव का सामना कर रहा है।

गन्ने के खेत: वन्यजीवों का नया आवास

गन्ने के खेत अब न सिर्फ वन्यजीवों के लिए छिपने की जगह बन गए हैं, बल्कि वे उनके ब्रीडिंग ग्राउंड भी बनते जा रहे हैं। डॉ. शैलेंद्र सिंह, बहराइच किसान विज्ञान केंद्र के इंचार्ज, का कहना है कि गन्ने की खेती में वृद्धि मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रमुख कारण है।

गन्ने की खेती का क्षेत्र नदी के कछारों तक पहुंच चुका है, जहां पहले वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास था। अब ये जीव खेतों में छिपने और शिकार के बाद आराम करने के लिए इन खेतों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव बढ़ रहा है, खासकर भेड़िए जैसे जानवरों के साथ।

भेड़ियों की मौजूदगी और ग्रामीणों की चिंता

महसी क्षेत्र के औराही गांव के निवासी सैयद अली बताते हैं कि पहले गन्ने की खेती इतनी नहीं होती थी, लेकिन अब इसे नदी के कछार तक बोया जा रहा है। भेड़िए अक्सर इन खेतों में दिखाई देते हैं, और वे आवारा पशुओं को शिकार बनाते हैं। मुकेरिया गांव में हाल ही में भेड़िए ने एक बकरी और एक भैंस का शिकार किया, जिससे ग्रामीणों में डर और आक्रोश बढ़ गया है।

राघवेंद्र सिंह, गांव के एक अन्य सदस्य, बताते हैं कि पहले भेड़िए ग्रामीणों के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं थे, लेकिन अब वे उनके पशुधन के लिए खतरा बन गए हैं। इससे ग्रामीण वन्यजीवों पर हमलावर हो रहे हैं, जो उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

वन्यजीव संरक्षण पर बढ़ती चुनौतियां

वन्यजीवों को खेतों में पकड़ने के लिए वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा करने से इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि, अब ग्रामीण इस चेतावनी को अनदेखा कर रहे हैं। राकेश कुमार गौतम, एक ग्रामीण, कहते हैं कि वन विभाग की सलाह के बावजूद ग्रामीण अब वन्यजीवों से निपटने के लिए खुद कदम उठा रहे हैं।

बहराइच में गन्ने की खेती का विस्तार वन्यजीवों और मानवों के बीच संघर्ष का एक प्रमुख कारण बन गया है। जहां पहले गन्ने की खेती सीमित थी, अब इसका क्षेत्र बढ़कर नदी के कछार और वन्य क्षेत्रों तक पहुंच गया है, जिससे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों पर दबाव बढ़ा है। इसने वन्यजीवों, खासकर भेड़ियों, को खेतों और मानव बस्तियों के करीब आने पर मजबूर कर दिया है, जिससे ग्रामीणों और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं बढ़ी हैं।

इस संघर्ष को कम करने के लिए कृषि विस्तार और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। गन्ने की बढ़ती खेती और इससे जुड़े आर्थिक लाभों को देखते हुए, ग्रामीणों के लिए वैकल्पिक खेती के विकल्प, वन्यजीवों के संरक्षण के उपाय, और जागरूकता कार्यक्रमों की जरूरत है। अन्यथा, यह संघर्ष न केवल वन्यजीवों के लिए बल्कि मानव समुदायों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।

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