वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में तेजी से महसूस किए जा रहे हैं। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के लगभग 84 प्रतिशत जिले अत्यधिक गर्मी की चपेट में हैं, और 70 प्रतिशत जिलों में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2036 तक हर 10 में से 8 भारतीय चरम मौसमी घटनाओं से प्रभावित होंगे।
रिपोर्ट का मुख्य बिंदु
आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट “मॉनसून इन ए वार्मिंग क्लाइमेट” के अनुसार, 1993 से 2022 तक के आंकड़ों के आधार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन दशकों में भारत में अत्यधिक तापमान और अनियमित वर्षा की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
शोधकर्ता अविनाश मोहंती के अनुसार, पिछले शताब्दी में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि ने विनाशकारी वर्षा और अत्यधिक गर्मी की घटनाओं को जन्म दिया है। हाल ही में केरल में हुई अनियमित वर्षा और भूस्खलन इन परिवर्तनों के स्पष्ट उदाहरण हैं। ईएसआरआई इंडिया के प्रबंध निदेशक अगेंद्र कुमार ने कहा कि तीव्र वर्षा और हीटवेव की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता जीवन, आजीविका और बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक गर्मी की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में पिछले एक दशक में 19 गुना वृद्धि हुई है। अगर यह स्थिति बनी रही तो भविष्य में न केवल अत्यधिक गर्मी की घटनाओं में वृद्धि होगी, बल्कि प्रभावित लोगों की संख्या भी बढ़ेगी। मार्च से सितंबर तक लगातार सात महीनों तक भीषण गर्मी वाले दिनों की संख्या में 15 गुना वृद्धि हुई है, जो कि एक चिंताजनक संकेत है।
संस्थागत प्रयास और समाधान
आईपीई ग्लोबल लिमिटेड, जो विकासशील देशों को सतत विकास में मदद करता है, इस रिपोर्ट में तकनीकी सहायता और समाधान प्रदान करने का वादा करता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए कदम और योजनाओं के बावजूद, रिपोर्ट के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए और भी ठोस उपायों की आवश्यकता है।
इस अध्ययन के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन के तात्कालिक प्रभावों को उजागर करते हैं और इसे हल करने के लिए व्यापक और प्रभावी योजनाओं की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
यह अध्ययन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम तेजी से गंभीर हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, देश के 84 प्रतिशत जिले अत्यधिक गर्मी की चपेट में हैं, और 70 प्रतिशत जिलों में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि हो रही है। 2036 तक हर 10 में से 8 भारतीय चरम मौसमी घटनाओं से प्रभावित होने की आशंका है, जो कि भविष्य में व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव डाल सकती है।
तापमान में वृद्धि और अनियमित वर्षा के परिणामस्वरूप भूस्खलन, बाढ़, हीटवेव और अन्य चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है, जिससे जीवन, आजीविका और बुनियादी ढांचे पर गंभीर असर पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीषण गर्मी की घटनाओं में पिछले एक दशक में 19 गुना वृद्धि हुई है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और तकनीकी सहायता की आवश्यकता है। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए और अधिक प्रभावी और व्यापक उपायों की आवश्यकता है। यह अध्ययन नीति-निर्माताओं, योजनाकारों और आम जनता को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक सामूहिक प्रयास की दिशा में प्रेरित करता है ताकि भविष्य में इसके दुष्परिणामों को नियंत्रित किया जा सके और लोगों की जीवन गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सके।
Source and data – अमर उजाला