पराली, जो अक्सर प्रदूषण का कारण बनती है, अब एक नए ऊर्जा स्रोत के रूप में उभर सकती है। IIT-ISM के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे पराली और कोयले के कचरे का उपयोग कर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस तकनीक का सही उपयोग देश की आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
ऊर्जा का नया साधन
प्रो. चंदन गुड़िया, जो IIT-ISM के पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत हैं, ने इस तकनीक पर काम करना शुरू किया। उन्होंने पराली जलाने से त्रस्त दिल्ली, हरियाणा, और पंजाब की समस्याओं का समाधान खोजने का विचार किया। उनके प्रयासों में उन्हें एक टीम बनाई और शोध का खर्च खुद उठाने का फैसला किया।
प्रो. गुड़िया ने बताया कि पराली को पीसकर कोयले में मिलाया जाता है, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। प्रयोगशाला में मीथेन गैस बनाने के लिए एक मशीन लगाई गई है। पराली दहनीय होती है और कोयले की राख को सस्ते में धोकर दोनों को मिलाकर गोलियां बनाई जाती हैं। इन गोलियों को बिना ऑक्सीजन के उच्च तापमान पर जलाया जाता है, जिससे लगभग 70-75 प्रतिशत मीथेन गैस निकलती है।
स्वास्थ्य और सुरक्षा के मुद्दे
शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पराली और कोयले की राख से बनी गैस का प्रयोग करते हुए गुब्बारा भरा। जब गुब्बारा फुला, तो टीम ने खुशी मनाई, लेकिन जब जार में भरते समय उपकरण में विस्फोट हो गया, तब प्रो. गुड़िया घायल हो गईं। हालाँकि, इस हादसे ने टीम का उत्साह नहीं घटाया।
भविष्य की संभावनाएँ
अब, IIT-ISM के नए निदेशक प्रो. सुकुमार मिश्रा ने इस शोध को आगे बढ़ाने के लिए समर्थन दिया है। प्रो. गुड़िया का मानना है कि यदि भारत सरकार इस तकनीक को अपनाकर प्लांट स्थापित करती है, तो पराली से समृद्धि आ सकती है। यह तकनीक न केवल घरेलू हरित ईंधन के रूप में उपयोगी होगी, बल्कि यूरिया और सीमेंट उद्योग में भी सहायक साबित हो सकती है।
इस नई तकनीक से पराली को एक ऊर्जा स्रोत के रूप में स्थापित करने की संभावनाएँ प्रदूषण कम करने और आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि इसे सही दिशा में अपनाया गया, तो यह न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकेगा बल्कि देश के कृषि क्षेत्र में भी सुधार ला सकता है।
पराली, जिसे अक्सर प्रदूषण का कारण माना जाता है, अब एक संभावित ऊर्जा स्रोत के रूप में सामने आ रही है। IIT-ISM के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई तकनीक के माध्यम से, पराली और कोयले के कचरे का उपयोग कर मीथेन गैस उत्पन्न की जा सकती है, जो न केवल पर्यावरण को साफ रखने में मददगार है, बल्कि ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान भी दे सकती है।
यह तकनीक देश के कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है, जिससे न केवल आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी, बल्कि प्रदूषण के मुद्दे को भी संबोधित किया जा सकेगा। यदि इस पहल को सही दिशा में अपनाया गया, तो पराली का सही उपयोग न केवल पर्यावरण की रक्षा करेगा, बल्कि इसे एक मूल्यवान संसाधन में भी बदल सकता है।