देश के उत्तरी राज्यों, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने का मुद्दा हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले चर्चा का केंद्र बन जाता है। किसानों द्वारा पराली जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण दिल्ली-एनसीआर समेत कई क्षेत्रों में गंभीर स्थिति पैदा कर देता है। सरकारें जुर्माने और कानूनी कार्रवाइयों के बावजूद अब तक इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने में असफल रही हैं।
पराली जलाना: क्यों बढ़ता है किसानों का रुझान?
फसल कटाई के बाद खेतों में बची पराली किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। धान की खेती के बाद बचने वाले इन अवशेषों को नष्ट करना जरूरी होता है, ताकि अगली फसल की तैयारी की जा सके। हालांकि पराली को जलाना गैरकानूनी है, फिर भी किसान इसे तेजी से नष्ट करने का सबसे सस्ता और आसान तरीका मानते हैं।
वहीं, कई छोटे किसानों का कहना है कि पराली को इकट्ठा कर ले जाने या जैविक खाद में बदलने के लिए जरूरी मशीनों का खर्च वे नहीं उठा पाते। समय की कमी और वित्तीय सीमाएं उन्हें पराली जलाने के लिए मजबूर करती हैं।
पराली जलाने से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर
पराली जलाने से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे प्रदूषक तत्व हवा में फैल जाते हैं। इससे वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है और दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग की मोटी परत बन जाती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, इस प्रदूषण से दमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग और फेफड़ों की समस्याएं तेजी से बढ़ती हैं। खासतौर पर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक हो जाती है।
सरकार और न्यायालय का रुख: क्या जुर्माना समाधान है?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा सरकार को पराली जलाने पर पर्याप्त कार्रवाई न करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीना नागरिकों का मौलिक अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना राज्य सरकारों और केंद्र की जिम्मेदारी है।
हालांकि, केवल जुर्माने लगाने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि किसानों पर जुर्माना लगाने से उनके आर्थिक संकट और बढ़ सकते हैं, जिससे वे और अधिक परेशानियों का सामना करेंगे।
प्रौद्योगिकी और सहयोग से समाधान की ओर
पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है, जब सरकारें, उद्योग और किसान मिलकर काम करें। यहां कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं जो स्थायी समाधान की दिशा में मददगार हो सकते हैं:
- पराली प्रबंधन मशीनें और उपकरण: सरकार को किसानों को सस्ती दरों पर ‘सुपर सीडर’ और ‘हैप्पी सीडर’ जैसी मशीनें उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि पराली को खेतों में ही खाद के रूप में बदला जा सके।
- सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएं: किसानों को पराली प्रबंधन के लिए सब्सिडी और आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए। इससे वे वैकल्पिक तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।
- बायोफ्यूल उद्योग का विकास: पराली को इकट्ठा करके बायोफ्यूल बनाने वाले उद्योगों में उपयोग किया जा सकता है। इससे न केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
- जनजागरण अभियान: सरकार और एनजीओ को मिलकर किसानों को जागरूक करने के अभियान चलाने चाहिए, जिससे वे पर्यावरण पर पराली जलाने के दुष्प्रभावों को समझ सकें।
दिल्ली-एनसीआर की प्रदूषण समस्या: सामूहिक प्रयास की जरूरत
दिल्ली-एनसीआर में हर साल बढ़ते प्रदूषण के लिए केवल किसानों को दोषी ठहराना पर्याप्त नहीं है। वाहनों से होने वाला प्रदूषण, निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल और उद्योगों से निकलने वाले धुएं का भी इस स्थिति में बड़ा योगदान है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को समग्र दृष्टिकोण अपनाकर काम करना होगा।
अगले कदम: समय पर कार्रवाई जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से इस दिशा में ठोस कदम उठाने का आदेश दिया है। सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जुर्माने और प्रतिबंधों के साथ-साथ किसानों को विकल्प भी मुहैया कराए जाएं। यह मामला केवल पर्यावरण संरक्षण का नहीं, बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य और उनके सम्मानजनक जीवन का भी है।
सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा
पराली जलाने की समस्या का हल केवल कानूनों से नहीं हो सकता। यह एक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौती है, जिसका समाधान सभी हितधारकों के सहयोग से ही संभव है। सरकारों को ठोस नीतियां बनानी होंगी, ताकि किसान बिना किसी आर्थिक दबाव के पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपना सकें। अगले कुछ महीनों में इस दिशा में उठाए गए कदम यह तय करेंगे कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्र इस बार भी प्रदूषण के धुंध में घिरेंगे या साफ आसमान में सांस लेंगे।
पराली जलाने की समस्या का समाधान केवल सख्त कानून और जुर्माने से नहीं किया जा सकता। यह एक जटिल मुद्दा है, जिसमें किसानों की आर्थिक सीमाएं, पर्यावरणीय चिंताएं और सरकारी नीतियों की कमी शामिल हैं। प्रदूषण से लड़ने के लिए सरकार, किसान और समाज को मिलकर काम करना होगा।
सरकारों को ऐसी नीतियां अपनानी होंगी जो किसानों को वैकल्पिक तकनीक और आर्थिक मदद उपलब्ध कराएं, ताकि वे पराली जलाने के बजाय पर्यावरण-अनुकूल समाधान अपनाएं। साथ ही, जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से यह संदेश देना जरूरी है कि स्वच्छ हवा में सांस लेना हर नागरिक का अधिकार है।