वाकई, हम इंसानों की सोच सिर्फ निजी स्वार्थों तक ही सीमित है। हम अपने फायदे-नुकसान को देखकर ही आगे बढ़ते हैं। कृपया, मानसून को कोसना बंद करें। यह गलत है। किसानों के लिए मानसून की बारिश अमृत के समान मानी जाती है। वैसे भी हमारे देश में कृषि व्यवस्था मूलतः वर्षा जल पर निर्भर है। इसका मतलब है कि हमें अनाज उत्पादन के लिए मानसून की बारिश की आवश्यकता है।
पिछले महीने जब पूरा उत्तर भारत सूरज की तपती गर्मी की चपेट में था, हर कोई यही कामना कर रहा था कि जल्द से जल्द मानसून आ जाए। उस समय धरती तप रही थी, इंसान भी खुद को उगते सूरज की तपिश झेलने में सक्षम नहीं समझ रहा था। राजधानी दिल्ली में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया था। ऐसे में मानसून राहत भरी बारिश लेकर आया। हम सबने इसका दिल खोलकर स्वागत किया, लेकिन अब जब हर तरफ से प्रतिकूल खबरें आने लगी हैं, तो हम इसे कोसने लगे हैं और कामना करने लगे हैं कि जल्द से जल्द यह बारिश बंद हो जाए।
हाँ, कहीं-कहीं अत्यधिक पानी के कारण जनजीवन प्रभावित होता है। वहाँ के बुनियादी ढाँचे को भी बहुत नुकसान पहुँचता है। लेकिन यह सब इसलिए होता है क्योंकि हम उनके रास्ते में आ गए हैं। जब हम पानी को बहने नहीं देंगे तो वह अपना रास्ता खुद ही खोज लेगा।
पहले के समय में हर क्षेत्र में पानी के बहाव के लिए एक प्राकृतिक रास्ता होता था। अब इंसानों ने अपनी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए जलमग्न क्षेत्रों में भी घर आदि बना लिए हैं। इस कारण शहरों में पानी फंसने लगा है। समस्याएँ इसी फँसे हुए पानी से पैदा होती हैं, मानसून से नहीं। पहाड़ों में भी लोग अपनी गलतियों का खामियाजा भुगतते हैं। ऐसे में मानसून की बारिश को क्यों दोष दें?
खराब मानसून कितनी परेशानियां खड़ी कर सकता है, यह आप किसी भी किसान से पूछ सकते हैं। इसलिए अभी मानसून की बारिश का आनंद लें और उन जगहों पर जाने से बचें जहां पूरी सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। अच्छे मानसून से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ता है, सिंचाई सुविधाएं बेहतर होती हैं, खाद्यान्न की कीमतों पर नियंत्रण रहता है, बिजली संकट कम होता है, नदियों का जलस्तर बढ़ता है, बिजली का बेहतर उत्पादन होता है, पानी की कमी दूर होती है। नदियां, जलाशय, तालाब आदि लबालब भर जाते हैं और सबसे बड़ी बात गर्मी से राहत मिलती है। ऐसे में मानसून को कोसने से हमें नुकसान ही होता है।