भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है, लेकिन इसका इस्तेमाल बंद नहीं हो रहा है। चिप्स और चॉकलेट से लेकर अन्य सभी सामान सिंगल यूज प्लास्टिक की पैकिंग में आ रहे हैं। इससे निपटने के लिए हिमाचल के शिमला जिले की युवा वैज्ञानिक शिवानी चौहान ने अपने स्टार्टअप के तहत इसका विकल्प तैयार किया है।
उन्होंने इसके लिए बायो पैकिंग मैटेरियल तैयार किया है, जिसमें चीड़ की पत्तियों, सेब और अन्य फलों के पौधों और फसलों के अवशेषों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा और प्लास्टिक मुक्त वातावरण बनेगा।

शिवानी चौहान की कंपनी “ग्रीन वाएल्बस” ने ऑर्गेनिक पैकिंग मैटेरियल तैयार किया है, जो पहाड़ों से लेकर मैदानों तक प्लास्टिक के खतरे से बचाएगा। शिवानी ने अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस पर बताया कि वह पर्यावरण की सेहत का ख्याल रखने के लिए किस तरह काम कर रही हैं।
ग्रीन वाएल्बस की शुरुआत वर्ष 2020 में कोविड महामारी के बीच हुई थी। अब इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाएगा। माइक्रोबायोलॉजी ऑनर्स में स्नातक होने के कारण शैक्षिक पृष्ठभूमि से यह विचार आया। ग्रीन वाएल्बस का लक्ष्य पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना चीजों को बेहतर बनाना है।
शिवानी चौहान की ग्रीन वाएल्बस कंपनी ने पैकिंग के लिए प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बायोपॉलिमर फिल्म तैयार की है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के बायो टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर के डॉ. अरविंद कुमार भट्ट और डॉ. रविकांत भाटिया के मार्गदर्शन में शिवानी चौहान ने यह बायोपॉलिमर विकसित किया है।
बायोपॉलिमर फिल्म की विशेषताएं:
- इसे पौधों और फसलों के अवशेषों की रासायनिक प्रक्रिया से तैयार किया जाता है।
- दूध और दही जैसे तरल पदार्थों के लिए भी पैकिंग सामग्री तैयार की जा सकती है।
- सेब और अन्य फलों की पैकिंग के लिए डिब्बे भी इससे बनाए जाते हैं।
- इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक नहीं होता है।
शिवानी चौहान ने बताया कि बायो पैकिंग सामग्री बनाने की लागत सिंगल यूज प्लास्टिक से 20 फीसदी कम होगी। ऐसे में वायो पैकेजिंग सामग्री बनाने से दोहरा लाभ मिलेगा। पैसे की बचत के साथ-साथ इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा। प्लास्टिक की वजह से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है और यह कई बीमारियों का कारण भी बन रहा है। शिवानी को 2023 में बेस्ट पेपर-2023 का अवॉर्ड भी दिया गया है।

सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण को पहुंचाता है नुकसान:
हिमाचल में प्लास्टिक लिफाफे और सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक से हर दिन 200 टन कचरा निकलता है। प्लास्टिक अब हवा, पानी और खाने के जरिए हमारे खून में जा रहा है, जिससे कैंसर और दूसरी बीमारियां हो रही हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा नालियों और नालों में फंसकर तबाही भी मचा रहा है।
वैज्ञानिक और पर्यावरण प्रेमी लगातार जागरूकता पैदा करने के साथ ही इसे रोकने की मांग कर रहे हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक: एक गंभीर पर्यावरणीय संकट
सिंगल यूज प्लास्टिक (एसयूपी) ने हमारी आधुनिक जीवनशैली को सुविधाजनक बनाने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन इसके बढ़ते उपयोग से पर्यावरण पर गंभीर खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक वह प्लास्टिक है जिसे एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। इसमें प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें, स्ट्रॉ, कप और अन्य पैकेजिंग सामग्री शामिल हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रभाव
सिंगल यूज प्लास्टिक के व्यापक उपयोग का पर्यावरण पर गहरा असर हो रहा है। प्लास्टिक कचरा नदियों, महासागरों और भूमि में जमा हो जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान होता है। जल निकायों में प्लास्टिक कचरे के कारण समुद्री जीवन प्रभावित हो रहा है। मछलियां और अन्य समुद्री जीव गलती से प्लास्टिक कचरा खा लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
सिंगल यूज प्लास्टिक के दुष्प्रभाव सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। प्लास्टिक कचरे में मौजूद रासायनिक तत्व खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनते हैं। प्लास्टिक में मौजूद बिस्फेनॉल ए (बीपीए) और फ्थैलेट्स जैसे रसायन हार्मोनल असंतुलन और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

समाधान और विकल्प
सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए हमें विभिन्न समाधानों और विकल्पों को अपनाना होगा। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
पुनः उपयोगी सामग्रियों का उपयोग: प्लास्टिक की जगह कागज, कपड़ा और धातु जैसी पुनः उपयोगी सामग्रियों का उपयोग किया जा सकता है।
बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक: बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उपयोग किया जा सकता है जो प्राकृतिक रूप से टूटकर पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता।
जन जागरूकता: लोगों को सिंगल यूज प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। इसके लिए शिक्षण संस्थानों, सामाजिक संगठनों और मीडिया के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं।
सरकारी नीतियाँ: सरकार को सिंगल यूज प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध लगाने और इसके उपयोग को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीतियाँ बनानी होंगी।
सिंगल यूज प्लास्टिक हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। इसे नियंत्रित करने के लिए हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाने होंगे। हर छोटे कदम से हम इस संकट को कम कर सकते हैं और एक स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
source- दैनिक जागरण / शोध