प्राकृतिक आपदाओं की गंभीरता और समाधान

saurabh pandey
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देश में प्राकृतिक आपदाओं को लेकर दिशा-निर्देश तो मौजूद हैं, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण उनका समुचित क्रियान्वयन नहीं हो पाता, जिससे आपदाओं की भयावहता और बढ़ जाती है। भूस्खलन, भूकंप और बादल फटने जैसी घटनाएं अब आम हो गई हैं, विशेषकर पहाड़ों पर रहने वाले लोग इन आपदाओं के सबसे बड़े शिकार होते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • मानवीय गतिविधियों की भूमिका: पहाड़ों का विनाश, वनों की कटाई, बड़ी परियोजनाओं और बहुमंजिला इमारतों का निर्माण आपदाओं को बढ़ावा देते हैं।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली का अभाव: देश में पूर्व चेतावनी प्रणाली की कमी के कारण जान-माल की हानि को रोका नहीं जा सकता। केरल के वायनाड में भूस्खलन की घटना इसका जीता जागता उदाहरण है।
  • सरकारी उपाय और राहत कार्य: सरकारें और सेना राहत कार्य में सक्रिय हैं, लेकिन यह आपदा का स्थायी समाधान नहीं है।

उपाय और सुझाव:

  • दबाव मापने वाले यंत्र का उपयोग: पहाड़ों पर दबाव मापने वाले यंत्र लगाए जाने चाहिए ताकि दबाव की स्थिति का पता चल सके और भूस्खलन की पूर्व सूचना मिल सके।
  • सुरक्षित स्थानों पर पहुँचने की व्यवस्था: लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • अन्य देशों से सीख: ताइवान जैसे देशों ने इस तंत्र का सफलतापूर्वक उपयोग किया है, जिसे हमें भी अपनाना चाहिए।
  • हिमाचल प्रदेश की स्थिति: हिमाचल प्रदेश में 17,102 स्थानों पर भूस्खलन की आशंका है और 6,420 सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र खतरनाक स्थिति में हैं।

जब तक पूरे देश में आपदा पूर्व सूचना प्रणाली स्थापित नहीं हो जाती, तब तक आपदाओं के समाधान की कल्पना करना बेमानी है। सरकारों को आपदाओं की रोकथाम के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे और पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाते हुए विकास कार्य करने होंगे।

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