पानी में घुली ऑक्सीजन जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, लेकिन हाल के वर्षों में जल स्रोतों में इसकी कमी चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुकी है। नई रिसर्च के अनुसार, पिछले चार दशकों में झीलों में 5.5% और जलाशयों में 18.6% ऑक्सीजन की गिरावट आई है। महासागरों में भी 1960 के बाद से 2% की कमी दर्ज की गई है। यह गिरावट जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान, और प्रदूषण के कारण हो रही है, जिससे पानी में घुलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है।
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
रिसर्च में पाया गया कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र ने भी 40% तक की ऑक्सीजन कमी का सामना किया है। रेनसेलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, यह स्थिति सभी प्रकार के जल स्रोतों में देखी जा रही है। अध्ययन के नतीजे “नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन” जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
ऑक्सीजन की कमी के गंभीर परिणाम
ऑक्सीजन की कमी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में बदलाव के कारण ऑक्सीजन की कमी हो रही है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ रहा है। बढ़ते तापमान और पोषक तत्वों के प्रभाव से ऑक्सीजन की खपत बढ़ रही है, और ग्लोबल वार्मिंग तथा प्रदूषण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर
केविन रोज के अनुसार, पानी में ऑक्सीजन की कमी प्रजातियों की वृद्धि, संवेदी क्षमता, और प्रजनन पर असर डाल सकती है। “मृत क्षेत्र” के रूप में जाने जाने वाले ऑक्सीजन की कमी वाले क्षेत्र मछली पकड़ने, जलीय कृषि, और पर्यटन को प्रभावित कर सकते हैं और हानिकारक शैवालों के खिलने की संभावना बढ़ाते हैं.
आवश्यक कदम और भविष्य की दिशा
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखना पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र और जलवायु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे मुद्दों से निपटना होगा। यदि ऑक्सीजन की कमी को ठीक नहीं किया गया तो इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र, समाज और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से बचाव की तत्काल आवश्यकता
हाल की रिसर्च ने यह स्पष्ट कर दिया है कि झीलों, जलाशयों और महासागरों में ऑक्सीजन की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। पिछले चार दशकों में ऑक्सीजन के स्तर में आई इस गिरावट से न केवल जलीय जीवन बल्कि पृथ्वी की पारिस्थितिकी और जलवायु पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
ऑक्सीजन की कमी के परिणामस्वरूप प्रजातियों की वृद्धि और प्रजनन प्रभावित हो रही है, और पूरे खाद्य जाल में परिवर्तन हो रहा है। इसके अलावा, “मृत क्षेत्र” जैसे ऑक्सीजन की कमी वाले क्षेत्र मछली पकड़ने, जलीय कृषि और पर्यटन को प्रभावित कर सकते हैं, साथ ही हानिकारक शैवालों के विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
इस संकट से निपटने के लिए जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इन मुद्दों का समाधान नहीं किया गया तो इसका प्रभाव पारिस्थितिकी तंत्र, सामाजिक संरचनाओं और वैश्विक आर्थिक गतिविधियों पर व्यापक रूप से पड़ेगा।
समान्यत: जलवायु परिवर्तन, जल स्रोतों की सुरक्षा और प्रदूषण नियंत्रण में तेजी लाना होगा ताकि जलवायु संतुलन बनाए रखा जा सके और हमारे ग्रह के पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर रखा जा सके। यह समय है कि हम अपनी नीतियों और कार्यों को पुनः परखें और एक स्थायी भविष्य की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
Source and data – down to earth