आज के दौर में जैसे-जैसे जनसंख्या और आहार संबंधी आवश्यकताएं बढ़ रही हैं, कृषि क्षेत्र में जल संसाधनों पर दबाव भी तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। ट्वेंटे विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने इस पहलू पर प्रकाश डाला है कि किस तरह से पानी का वैश्विक खपत स्तर कृषि उत्पादन के साथ बढ़ता जा रहा है। अध्ययन के अनुसार, फसल उत्पादन के लिए 2019 में करीब 7 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग किया गया, जो कि वर्षा से मिलने वाले हरे पानी और सिंचाई तथा भूजल स्रोतों से मिलने वाले नीले पानी का सम्मिलित आंकड़ा है।
खेती में हरे और नीले पानी का योगदान
कृषि के लिए उपयोग होने वाले पानी में एक बड़ा हिस्सा हरे पानी का है, जो बारिश से मिलता है, जबकि नीला पानी मुख्य रूप से सिंचाई और उथले भूजल स्रोतों से आता है। अध्ययन से पता चला है कि कुछ फसलों में उत्पादकता बढ़ने के बावजूद, इनकी कुल जल खपत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जोकि कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाओं के लिए चिंताजनक संकेत है।
1990 से 2019 के बीच 175 प्रकार की फसलों के जल पदचिह्नों की तुलना में, यह भी पाया गया कि खेती की कई पद्धतियों में सुधार के बावजूद, फसल उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले जल की मात्रा लगभग 30 प्रतिशत बढ़ गई है। इससे स्पष्ट होता है कि बेहतर तकनीक और खेती के तरीके अपनाने के बाद भी बढ़ती वैश्विक मांग और बदलते आहार पैटर्न जल संसाधनों पर अधिक भार डाल रहे हैं।
बढ़ती पानी की खपत के पीछे के कारण
पानी की खपत में इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण वैश्वीकरण और आर्थिक प्रगति है, जिसने न केवल वैश्विक स्तर पर विभिन्न फसलों की खपत को बढ़ाया है, बल्कि लोगों के आहार को भी प्रभावित किया है। अब लोग अधिक पानी वाली चीजों, जैसे मांस, डेयरी उत्पाद, शर्करायुक्त पेय, और वसायुक्त खाद्य पदार्थों का उपभोग बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, कई देशों की सरकारों ने जैव ईंधन के लिए फसलों का उत्पादन बढ़ाया है, जो कृषि क्षेत्र में पानी की खपत का एक नया स्रोत बन गया है।
भारत, चीन और अमेरिका: सबसे बड़े जल उपभोक्ता
अध्ययन के अनुसार, भारत, चीन और अमेरिका जैसे देश सबसे बड़े जल उपभोक्ताओं में आते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ते कृषि विस्तार ने जहां जल संसाधनों की खपत बढ़ाई है, वहीं इसने इन क्षेत्रों में जंगलों की कटाई, जैव विविधता में गिरावट और अन्य पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी दिखाए हैं।
भविष्य के लिए चुनौतियाँ और समाधान
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि हम जल्द से जल्द जल संसाधनों के संरक्षण और जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को नहीं अपनाते, तो आने वाले दशकों में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। इसके समाधान के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि अधिक फसल उत्पादन के लिए पानी की खपत को कम करने के प्रयास किए जाएं, सिंचाई में सुधार हो और जैव ईंधन के उत्पादन के लिए फसलों का उपयोग सीमित किया जाए।
आज यह समय की मांग है कि हम इस मुद्दे पर ध्यान दें और ऐसी रणनीतियाँ बनाएं, जो कृषि के लिए जल खपत को नियंत्रित करें। खेती में जल प्रबंधन की स्थायी पद्धतियों को अपनाना, भूजल स्तर को बनाए रखना और पर्यावरण के अनुकूल आहार विकल्पों पर विचार करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर कृषि और जल संसाधनों के बीच असंतुलन को स्पष्ट करता है। ऐसे समय में जब जनसंख्या और भोजन की मांग लगातार बढ़ रही है, जल संसाधनों का विवेकपूर्ण और प्रभावी उपयोग ही एकमात्र समाधान है। यदि हम अभी से जल संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तो निकट भविष्य में हमारे पास पानी की कमी एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है।
अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक स्तर पर फसल उत्पादन के लिए पानी की खपत में निरंतर वृद्धि पर्यावरण और जल संसाधनों के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही है। तेजी से बढ़ते वैश्वीकरण, आर्थिक प्रगति, और बदलते आहार पैटर्न ने जल संसाधनों पर भारी दबाव डाला है। भारत, चीन और अमेरिका जैसे प्रमुख देश, जहां जल की खपत सबसे अधिक है, को इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
यह जरूरी है कि हम कृषि में जल प्रबंधन की स्थायी और प्रभावी पद्धतियों को अपनाएं, साथ ही जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। दीर्घकालिक समाधान में खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता वाले तरीकों को प्रोत्साहित करना, सिंचाई पद्धतियों में सुधार लाना और जैव ईंधन के लिए फसलों के उपयोग को सीमित करना शामिल है। अगर हम सही दिशा में कदम बढ़ाएं, तो जल संकट को नियंत्रित करना संभव है, अन्यथा आने वाले समय में यह समस्या और विकट हो सकती है।