बीएचयू में जल प्रदूषण पर गंभीर अध्ययन: गंगा और अन्य नदियों में मछलियों की प्रजातियों पर संकट

saurabh pandey
4 Min Read

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हालिया शोध से यह सामने आया है कि गंगा, वरुणा और असी नदियों में घातक रसायनों के कारण मछलियों की प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में है। इस अध्ययन के अनुसार, मछलियों की प्रजनन क्षमता में 80 फीसदी की कमी आई है, जिससे सिंघी और मांगुर जैसी कई देशी प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।

प्रदूषण के कारण मछलियों की प्रजनन क्षमता में कमी

प्रोफेसर राधा चौबे और सहायक प्रोफेसर डॉ. गीता गौतम के नेतृत्व में हुए इस शोध में पाया गया कि एल्काइल फिनोल, टर्ट-ब्यूटाइल फिनोल और अन्य जहरीले रसायनों का मछलियों की निषेचन दर पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। ये रसायन दवाइयों, माइक्रोप्लास्टिक, डिटर्जेंट, कॉस्मेटिक उत्पादों, पेंट, प्लास्टिक कचरे और रासायनिक खादों में मौजूद हैं।

शोध में यह भी सामने आया कि मछलियों के भ्रूण गर्भ में ही मर रहे हैं और लार्वा में कई प्रकार की शारीरिक विकृतियाँ पाई गई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जल में मौजूद प्रदूषक मछलियों की जीविका के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं।

मछलियों की प्रजनन दर में गिरावट

प्रोफेसर चौबे ने बताया कि मछलियाँ पहले अपने वजन के अनुसार तीन से पांच लाख अंडे देती थीं, लेकिन अब यह संख्या घटकर 50 से 70 हजार के बीच रह गई है। अंडे सामान्यतः एक सप्ताह में विकसित होते हैं, लेकिन अब प्रदूषण के कारण ये अंडे महज चार से पांच दिन में ही मृत हो जा रहे हैं।

इंसानों तक पहुंचने वाला प्रदूषण

डॉ. गीता गौतम के अनुसार, बाजार में बिक रही अधिकांश मछलियों में खतरनाक रासायनिक कणों का प्रभाव देखा गया है। ये रासायनिक कण इंसानों तक पहुंच रहे हैं, जिससे लोगों में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस अध्ययन के लिए नदियों में स्वच्छ और प्रदूषित स्थानों का चयन किया गया, और नमूनों का विस्तृत विश्लेषण किया गया।

यह शोध जल प्रदूषण के गंभीर प्रभावों को उजागर करता है और इस बात की आवश्यकता को रेखांकित करता है कि मछलियों और अन्य जलजीवों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। यदि समय रहते उपाय नहीं किए गए, तो न केवल गंगा और अन्य नदियों की पारिस्थितिकी को नुकसान होगा, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बन सकता है।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट है कि जल प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, और इसे नियंत्रित करने के लिए न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता और कार्रवाई की आवश्यकता है।

बीएचयू के हालिया शोध ने गंगा, वरुणा और असी नदियों में जल प्रदूषण के गंभीर प्रभावों को उजागर किया है। मछलियों की प्रजातियों का विलुप्त होना और उनकी प्रजनन क्षमता में भारी कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। प्रदूषक रसायनों की बढ़ती मात्रा न केवल जलीय जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन रही है।

यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल जलजीवों की विविधता में कमी आएगी, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन को भी नुकसान पहुंचाएगा। इसके लिए, जल प्रदूषण को रोकने और नदियों के स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए ठोस और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाना और नीति निर्माण करना अत्यावश्यक है, ताकि हमारी नदियाँ और जल स्रोत सुरक्षित और स्वस्थ रह सकें।

Source –  dainik jagran

TAGGED:
Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *