भारत में दवा गुणवत्ता की गंभीर समस्या: 56 दवाएं जांच में फेल

saurabh pandey
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स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के प्रयासों के बावजूद, दवा गुणवत्ता में खामी का मुद्दा फिर से सुर्खियों में है। हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अक्तूबर महीने के लिए ड्रग अलर्ट जारी किया। इस जांच में देशभर की दवा कंपनियों के 56 नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे। इन नमूनों में हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, संक्रमण और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में उपयोग की जाने वाली दवाएं शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश पर सबसे बड़ा असर

रिपोर्ट के अनुसार, 23 दोषपूर्ण दवाएं हिमाचल प्रदेश की फार्मा कंपनियों में निर्मित थीं। राज्य, जो फार्मा उद्योग का एक प्रमुख केंद्र है, इस खुलासे के बाद सवालों के घेरे में है। निम्नलिखित दवाएं दोषपूर्ण पाई गईं:

  • सूजन और संक्रमण की दवाएं।
  • किडनी रोग और मधुमेह के उपचार की दवाएं।
  • त्वचा संक्रमण, गैस और दर्द निवारक दवाएं।

अन्य राज्यों की स्थिति:

हरियाणा: 4 दवाएं, जिनमें एंटीबायोटिक्स और आंखों के इलाज की दवाएं शामिल हैं।

उत्तराखंड: 8 दवाएं, जिनमें त्वचा संबंधी समस्याओं और कैल्शियम की कमी की दवाएं।

गुजरात: 6 दवाएं, जिनमें अल्सर और दर्द निवारक शामिल हैं।

सिक्किम और ओडिशा: सिंगल-यूज सिरिंज और रक्तचाप की दवाएं।

क्या हैं मुख्य समस्याएं?

CDSCO की रिपोर्ट में इन दवाओं की खामियों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसमें शामिल हैं:

  • मिसब्रांडेड दवाएं: इन पर दर्शाई गई जानकारी सही नहीं थी।
  • गुणवत्ता में कमी: दवाओं में आवश्यक घटक उचित मात्रा में मौजूद नहीं थे।
  • सुरक्षा मानकों की अनदेखी: सिरिंज और इंजेक्शन जैसे उत्पादों में खतरनाक दोष पाए गए।

CDSCO का कड़ा रुख

इस खुलासे के बाद CDSCO ने सभी राज्यों के औषधि नियंत्रकों को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जिन कंपनियों की दवाएं बार-बार खराब पाई जाती हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय ने नोटिस जारी करते हुए संबंधित कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगा है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भविष्य में दवाओं की गुणवत्ता से समझौता न हो।

जनता और स्वास्थ्य सेवाओं पर असर

दवा की गुणवत्ता में कमी का सीधा असर मरीजों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। यह न केवल इलाज को अप्रभावी बनाता है, बल्कि कई मामलों में मरीज की स्थिति और बिगड़ सकती है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होते हैं।

कड़े नियम लागू करना:

  • दवा उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए सख्त मानक लागू किए जाएं।
  • दोषपूर्ण दवाएं बनाने वाली कंपनियों पर जुर्माना और लाइसेंस रद्द करना।

जागरूकता बढ़ाना:

  • डॉक्टरों और मरीजों को ऐसी दवाओं से बचने के लिए सतर्क किया जाए।
  • दवा पैकेजिंग और जानकारी को और अधिक पारदर्शी बनाया जाए।

स्वतंत्र जांच और निगरानी:

  • दवा उद्योग की समय-समय पर स्वतंत्र जांच सुनिश्चित की जाए।
  • फार्मा कंपनियों के उत्पादों का रेंडम सैंपलिंग के जरिए परीक्षण किया जाए।

क्या है भविष्य का रास्ता?

भारत का दवा उद्योग वैश्विक स्तर पर एक बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों ने इस उद्योग की साख को कमजोर किया है। यह समय है कि सरकार, उद्योग, और संबंधित एजेंसियां मिलकर इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए काम करें। मरीजों के स्वास्थ्य और विश्वास को बनाए रखने के लिए दवा की गुणवत्ता सर्वोपरि होनी चाहिए। दवा उद्योग में सुधार और मरीजों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए यह कदम समय की मांग है।

दवा की गुणवत्ता में खामी न केवल मरीजों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, बल्कि यह देश के फार्मा उद्योग की विश्वसनीयता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। CDSCO की इस जांच से यह स्पष्ट है कि दवा निर्माण में सख्त निगरानी और पारदर्शिता की आवश्यकता है।

सरकार और औषधि नियंत्रकों को मिलकर दवा उद्योग में सुधार लाने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक तकनीकों और स्वतंत्र जांच एजेंसियों की मदद ली जानी चाहिए। साथ ही, मरीजों और डॉक्टरों को जागरूक बनाना भी अनिवार्य है ताकि वे दोषपूर्ण दवाओं से बच सकें।

दवा उद्योग की जिम्मेदारी केवल दवाओं का उत्पादन करना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि हर उत्पाद मरीजों के स्वास्थ्य को सुरक्षित और बेहतर बनाए। यह सुधार न केवल भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक फार्मा उद्योग में देश की साख को भी बढ़ाएगा।

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