भारत में महुआ, चिरौंजी और आंवला पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर प्रभाव

saurabh pandey
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भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विभिन्न पेड़-पौधों पर गहरा पड़ सकता है। हाल के अध्ययन में यह सामने आया है कि जलवायु में बदलाव महुआ, चिरौंजी और आंवला जैसे पेड़ों की वृद्धि और वितरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

अध्ययन के अनुसार, बेल और बहेड़ा जैसे पेड़ों को जलवायु परिवर्तन से लाभ हो सकता है, जबकि महुआ, चिरौंजी और आंवला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यह शोध बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, ग्रेनोबल आल्प्स विश्वविद्यालय, और जैव विविधता संरक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान के विशेषज्ञों द्वारा किया गया है। अध्ययन के नतीजे “एनवायरमेंटल मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट” में प्रकाशित हुए हैं।

शोध में दो जलवायु परिदृश्यों – आरसीपी 2.6 और आरसीपी 8.5 – पर ध्यान केंद्रित किया गया है। आरसीपी 2.6 के तहत कार्बन उत्सर्जन में कमी आनी शुरू हो सकती है, जबकि आरसीपी 8.5 परिदृश्य के अनुसार, तापमान में 3.3 से 5.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।

अध्ययन से पता चलता है कि बेल और बहेड़ा के लिए उपयुक्त आवास क्षेत्रों में वृद्धि हो सकती है, जबकि महुआ, चिरौंजी और आंवला जैसे पेड़ वृद्धि के लिए अनुकूल क्षेत्रों में गिरावट का सामना कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बेल का आदर्श क्षेत्र दक्षिण दक्कन, पूर्वी पठार, पूर्वी तट, और गंगा के मैदानों में स्थानांतरित हो सकता है, जबकि महुआ की उपयुक्तता पश्चिमी घाट और दक्कन प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्सों में घट सकती है।

आंवला और चिरौंजी की उपयुक्तता में भी कमी देखी जा सकती है, विशेष रूप से आरसीपी 8.5 परिदृश्य के तहत। यह परिवर्तन उन क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है जहां ये पेड़ वर्तमान में पाए जाते हैं, जैसे कि शिवालिक पहाड़ियाँ, पश्चिमी घाट, और ब्रह्मपुत्र घाटी।

इस अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक, ज्योति श्रीवास्तव, ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। उन्होंने स्थानीय लोगों और सरकारी निकायों को इन पेड़ों की रक्षा के लिए योजना बनाने और लागू करने की सलाह दी है।

श्रीवास्तव ने कहा, “हमें उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए स्थायी समाधान खोजने के लिए इस तरह के और अध्ययनों की आवश्यकता है।”

जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ आक्रामक प्रजातियों, प्रदूषण, और अत्यधिक दोहन जैसे कारक भी जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम इन खतरों को समझें और प्रभावी समाधान विकसित करें।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भारत के महत्वपूर्ण पेड़-पौधों जैसे महुआ, चिरौंजी और आंवला पर गंभीर हो सकता है। हाल के अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि बदलती जलवायु परिस्थितियाँ इन पौधों की वृद्धि और वितरण को प्रभावित कर सकती हैं। जहां बेल और बहेड़ा को भविष्य में संभावित लाभ हो सकता है, वहीं महुआ, चिरौंजी और आंवला की उपयुक्तता में कमी का खतरा बना हुआ है।

यह बदलाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में देखने को मिल सकते हैं जहां इन पौधों का वर्तमान में प्रसार है। उदाहरण के लिए, महुआ और आंवला के उपयुक्त क्षेत्र सिकुड़ सकते हैं, जबकि बेल और बहेड़ा के लिए नई संभावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को इन संभावित बदलावों को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माण और प्रबंधन योजनाओं में सुधार करना चाहिए। स्थानीय समुदायों और सरकारी संगठनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि इन पौधों की संरक्षण और प्रबंधन के लिए उचित उपाय किए जा सकें। इसके साथ ही, भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और प्रबंधित करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है, ताकि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।

source and data- down to earth

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