शनि ग्रह की धार्मिक आस्था के साथ-साथ विज्ञान में भी गहरी दिलचस्पी है। आने वाले दिनों में शनि ग्रह में एक महत्वपूर्ण खगोलीय बदलाव देखने को मिलेगा: इसके छल्ले गायब होने लगे हैं। अनुमान है कि अगले साल मार्च तक ये छल्ले पूरी तरह से अदृश्य हो जाएंगे, लेकिन इसके बाद छल्लों की दृश्यता का चक्र फिर से शुरू हो जाएगा। हालांकि, यह प्रक्रिया खगोल विज्ञान में आम है, लेकिन वैज्ञानिक इसे अत्यंत दिलचस्प मानते हैं।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वरिष्ठ खगोलशास्त्री डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार, शनि के छल्लों का गायब होना शनि और पृथ्वी की अपनी कक्षाओं में घूमने के कारण होता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है, जबकि शनि 26.73 डिग्री झुका हुआ है। शनि सूर्य से 1.343 बिलियन किलोमीटर की दूरी पर परिक्रमा करता है, और इस परिक्रमा के दौरान उसकी कोणीय स्थिति बदलती रहती है, जिससे पृथ्वी से दिखाई देने वाले छल्लों की स्थिति भी बदलती है।
अब समय आ गया है जब शनि के छल्लों की दृश्यता में भारी कमी आ गई है। मार्च में छल्ले पूरी तरह से दिखाई देना बंद हो जाएंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि के छल्ले अब पतले हो गए हैं, क्योंकि ये छल्ले धूल और बर्फ से बने हैं और बर्फ पिघलने के कारण पतले हो गए हैं। संभव है कि भविष्य में छल्ले पूरी तरह से गायब हो जाएं, लेकिन ऐसा होने में लाखों या अरबों साल लग सकते हैं।
छल्लों के गायब होने की प्रक्रिया लगभग 15 साल की होती है। छल्ले अदृश्य होने के बाद 13 से 15 साल के बीच पूरी तरह से दिखाई देने लगते हैं। डॉ. पांडे ने कहा कि शनि के छल्लों की खूबसूरती का अंदाजा लगाया जाता है, और छल्लों का अध्ययन करने वाले खगोलविदों के लिए यह घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शनि ग्रह के छल्लों का गायब होना एक खगोलीय घटना है, जो ग्रहों की कक्षीय स्थितियों और उनके कोणीय झुकाव के कारण होती है। शनि के छल्लों की दृश्यता में यह कमी एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है, जो हर 15 साल के अंतराल पर घटित होती है। अगले साल मार्च तक ये छल्ले पूरी तरह से अदृश्य हो जाएंगे, लेकिन बाद में फिर से देखने को मिलेंगे। वैज्ञानिक इसे महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि यह शनि के छल्लों के स्वरूप और उनके अध्ययन के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। शनि के छल्लों की पतलापन और उनकी संभावित अदृश्यता एक दीर्घकालिक परिवर्तन की ओर संकेत करती है, जो लाखों वर्षों में पूरा हो सकता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, वैज्ञानिक शनि के छल्लों की बनावट और उनके परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश कर रहे हैं।
Source – दैनिक जागरण