नई दिल्ली। तिब्बती पठार पर झीलों का क्षेत्रफल 21वीं सदी में कम उत्सर्जन के बावजूद 50 फीसदी तक फैल जाएगा। इससे लोगों के रहने वाली जगहों से लेकर खेती की जमीन और पारिस्थितिक तंत्र के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो जाएगा। यह चेतावनी शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने शोध के माध्यम से दी है। हाल के दशकों में बदलती जलवायु परिस्थितियों और तापमान स्तर पर बढ़ती गर्मी के कारण इन झीलों का विस्तार हो रहा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार तिब्बती पठार पर झीलों में भविष्य में होने वाले बदलावों का अध्ययन करने के लिए कुछ मॉडलों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इन मॉडलों में स्थानिक-समय संबंधी विविधता के कारण अलग-अलग झीलों के भविष्य को भांपने की सीमाएं हैं। इसके अलावा पिछले कुछ अध्ययनों में केवल कुछ ही झीलों पर ध्यान दिया गया था, लेकिन नए अध्ययन में यह अनुमान है कि चार गुना बढ़ने वाला 652 अरब टन हो जाएगा।
तीन दशक में 10,000 वर्ग किमी तक फैली
नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित शोध से पता चला है कि पिछले तीन दशकों में तिब्बती पठार किन्हाई-शिजांग की झीलों का विस्तार 10,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक हो गया है। साल 2100 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य में तिब्बती पठार में झीलों का कुल क्षेत्रफल 2020 की तुलना में लगभग 50 फीसदी बढ़ जाएगा, जो वर्तमान क्षेत्रफल को तुलना में चार गुना अधिक होगा। इस वृद्धि के कारण पठार पर बनी झीलों के स्तर में 10 मीटर का इजाफा हो सकता है। इसका मतलब है कि 20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर इसका असर पड़ेगा।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि भविष्य में झील के पानी की मात्रा में वृद्धि से इसकी गहराई में कमी आएगी, जिससे झील के पारिस्थितिक तंत्र की प्रजातियों की पोषक संरचना में बदलाव आएगा। इसके अलावा झील के बेसिन के पुनर्निर्माण के कारण नई नदियों और चैनलों के निर्माण में मदद मिलेगी, जिससे सामाजिक विकास और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव को कम करने के लिए अधिक प्रभावी तंत्रिक प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए तत्काल जरूरत है।
तत्काल प्रभावी उपाय करने की जरूरत
वैज्ञानिकों ने कहा है कि भविष्य में झील के पानी की मात्रा में वृद्धि से इसकी गहराई में कमी आएगी, जिससे झील के पारिस्थितिक तंत्र की प्रजातियों की पोषक संरचना में बदलाव आएगा। इसके अलावा झील के बेसिन के पुनर्गठन के कारण नई नदी चैनलों के निर्माण में मदद मिलेगी, जिससे सामाजिक विकास और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव को कम करने के लिए अधिक प्रभावी तंत्रिक प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए तत्काल जरूरत है।