नई दिल्ली में प्रदूषण के खिलाफ जंग: सड़कें और सफाई ही समाधान,आईआईटी दिल्ली का महत्वपूर्ण शोध

saurabh pandey
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राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। हाल ही में आईआईटी दिल्ली द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण शोध ने इस दिशा में एक नई आशा की किरण दिखाई है। शोध में पाया गया है कि सड़कें और फुटपाथ अगर साफ और सुगम हों, तो इससे पीएम 2.5 जैसे हानिकारक कणों के स्तर में कमी आ सकती है। इस रिपोर्ट ने न केवल शोधकर्ताओं को, बल्कि स्थानीय प्रशासन और आम नागरिकों को भी जागरूक किया है कि छोटे-छोटे कदम प्रदूषण को कम करने में कितने प्रभावी हो सकते हैं।

स्वच्छ हवा की ओर बढ़ता कदम, आईआईटी दिल्ली की नई शोध रिपोर्ट ने दिखाई राह

आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शोध में तीन प्रमुख इलाकों – जहांगीरपुरी, रोहिणी, और करोल बाग – का चयन किया। इन क्षेत्रों में सड़कें, फुटपाथ और कचरे की समस्या का गहराई से अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि स्थानीय स्रोतों से उत्पन्न होने वाले पीएम 2.5 के कणों की संख्या में महत्वपूर्ण कमी आई है जब इन क्षेत्रों में छोटे-छोटे सुधार किए गए।

इस अध्ययन के दौरान, 35 सेंसर स्थापित किए गए थे, जो प्रदूषण स्तर को निरंतर मापते रहे। शोध का कार्य जुलाई 2023 से शुरू होकर मार्च 2024 तक चला। शोध में यह भी ध्यान दिया गया कि कैसे सड़कों पर मौजूद गंदगी और अव्यवस्था प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रही थी।

परिणाम और सुधार

शोध के नतीजे बताते हैं कि जहांगीरपुरी में पीएम 2.5 के स्तर में 27% की कमी आई, वहीं रोहिणी में यह कमी 15.7% और करोल बाग में 15.3% रही। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के सुधार किए जाएं, तो वायु गुणवत्ता में बड़े बदलाव संभव हैं।

आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रो. साग्निक डे ने कहा, “यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि सफाई और नियमित रखरखाव के जरिए प्रदूषण को कम किया जा सकता है। अब यह समय है कि प्रशासन और नागरिक मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।”

नागरिक सहभागिता

शोध के लिए एक विशेष ऐप भी विकसित किया गया, जिसमें लोगों ने अपनी शिकायतें दर्ज कीं। आठ महीनों में, कुल 2.3 लाख शिकायतें प्राप्त हुईं। इनमें सबसे अधिक शिकायतें दिल्ली से आईं, उसके बाद नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद का नंबर रहा। स्थानीय निकायों ने इन शिकायतों के समाधान में तेजी दिखाई है, जिससे नागरिकों में जागरूकता और सहयोग बढ़ा है।

ठोस कदम उठाने की आवश्यकता

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि देश के अन्य शहरों में भी इस प्रकार के कार्यक्रमों को लागू किया जाना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण के लिए व्यापक नीतियों की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए।

डॉ. सोफिया राव, रिसर्च स्कॉलर ने कहा, “प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण करने से हवा की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार संभव है। यह न केवल शहरी जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित करेगा।”

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या को सुलझाने के लिए यह शोध एक महत्वपूर्ण कदम है। यह बताता है कि नागरिकों की सहभागिता और प्रशासनिक कार्रवाई के द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। सड़कें और फुटपाथ अगर साफ होंगे, तो स्वच्छ हवा का सपना साकार हो सकता है।

आईआईटी दिल्ली के शोध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में छोटे-छोटे सुधारों का बड़ा प्रभाव हो सकता है। साफ-सुथरी सड़कें और फुटपाथ, उचित कचरा प्रबंधन, और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी मिलकर एक स्वस्थ वातावरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

यह अध्ययन प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने की आवश्यकता को उजागर करता है, ताकि हम अपने शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकें। स्थानीय निकायों और नागरिकों के बीच सहयोग और संवाद का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम सभी एकजुट होकर प्रयास करें और छोटे-छोटे बदलाव लाएं, तो स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण का सपना साकार करना संभव है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस दिशा में ठोस कदम उठाएं और एक बेहतर भविष्य के लिए योगदान दें।

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