हाल ही में प्रकाशित एक शोध अध्ययन में बताया गया है कि वायु प्रदूषण और यातायात का शोर मानव प्रजनन क्षमता पर गहरा प्रभाव डालते हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका BMJ में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, लंबे समय तक वायु प्रदूषण के महीन कणों (PM 2.5) के संपर्क में रहने से पुरुषों में बांझपन का जोखिम 24% तक बढ़ जाता है। वहीं, यातायात का शोर 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में बांझपन के जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है।
पुरुषों और महिलाओं में बांझपन पर प्रभाव
शोधकर्ताओं के अनुसार, बांझपन एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है, जिससे गर्भधारण की कोशिश कर रहे हर सात में से एक जोड़े को जूझना पड़ता है। कण वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से शुक्राणु की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। हालांकि, पिछले अध्ययनों में वायु प्रदूषण और प्रजनन सफलता के बीच स्पष्ट संबंध नहीं पाए गए थे, लेकिन इस शोध ने इसका ठोस प्रमाण दिया है।
यातायात के शोर के प्रभाव पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाएं पांच साल तक औसत 10.2 डेसिबल के शोर के संपर्क में रहीं, उनमें बांझपन का खतरा 14% तक बढ़ गया। 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में यह जोखिम और अधिक पाया गया है।
विशाल आंकड़ों पर आधारित निष्कर्ष
यह अध्ययन 30 से 45 वर्ष की आयु के 5,26,056 पुरुषों और 3,77,850 महिलाओं पर आधारित है, जिनके दो से कम बच्चे थे और जो सक्रिय रूप से गर्भधारण की कोशिश कर रहे थे। यह शोध 2000 से 2017 तक डेनमार्क में रहने वाले लोगों पर किया गया था। इस शोध में उन प्रतिभागियों को भी शामिल किया गया जिन्होंने गर्भधारण रोकने के लिए सर्जरी या नसबंदी करवाई थी, ताकि अधिक व्यापक परिणाम प्राप्त किए जा सकें।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि बढ़ता वायु प्रदूषण और यातायात का शोर न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, बल्कि प्रजनन क्षमता को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। इस दिशा में जागरूकता और प्रभावी उपायों की आवश्यकता है ताकि बांझपन जैसी समस्याओं को कम किया जा सके।
इस शोध से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण और यातायात का शोर केवल पर्यावरणीय मुद्दे नहीं हैं, बल्कि ये मानव प्रजनन क्षमता पर भी गंभीर प्रभाव डालते हैं। पुरुषों में वायु प्रदूषण से बांझपन का जोखिम 24% तक बढ़ जाता है, जबकि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में यातायात के शोर से यह जोखिम 14% तक बढ़ सकता है। इस अध्ययन के निष्कर्ष हमें यह समझने में मदद करते हैं कि आधुनिक जीवनशैली के ये कारक हमारे स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता के लिए कितने हानिकारक हो सकते हैं। ऐसे में वायु प्रदूषण और शोर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता को सुरक्षित रखा जा सके।
Source- amar ujala