भारत में मानसिक बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में एक गंभीर समस्या उभरकर सामने आई है। यूरोपीय, कतरी और भारतीय शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कई कॉकटेल दवाएं, जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए प्रयोग की जाती हैं, को बिक्री के लिए कोई आधिकारिक मंजूरी नहीं मिली है। यह जानकारी जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल पॉलिसी एंड प्रैक्टिस में प्रकाशित रिपोर्ट से प्राप्त हुई है, जिसमें खुलासा हुआ है कि 10 में से छह कॉकटेल दवाएं पूरी तरह से अवैध हैं।
अवैध दवाओं की चिंता
अध्ययन के अनुसार, भारत में मानसिक बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त 60% से अधिक कॉकटेल दवाओं के पास किसी भी सरकारी स्वीकृति का लाइसेंस नहीं है। इन दवाओं में एक से अधिक दवाएं मिलाकर बनाई जाती हैं, और इसके बावजूद भारत में इनका कारोबार कई हजार करोड़ रुपए का है। शोधकर्ताओं ने भारत के पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, यूके की न्यूकैसल यूनिवर्सिटी, लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी और कतर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है।
अवैध दवाओं के खतरे
नई दिल्ली स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की स्वास्थ्य विशेषज्ञ आशना मेहता ने बताया कि भारत लंबे समय से अवैध दवाओं की समस्या का सामना कर रहा है। उनके अनुसार, उनकी टीम पिछले एक दशक से इन दवाओं के कारोबार पर शोध कर रही है और 2023 में प्रकाशित अध्ययन में सामने आया है कि भारतीय बाजार में बेची जा रही 70% एंटीबायोटिक एफडीसी दवाएं भी बिक्री के लिए स्वीकृत नहीं हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि यह मामला गंभीर है और सरकार लंबे समय से एफडीसी दवाओं के खिलाफ कड़ा रुख अपना रही है। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस अध्ययन पर विचार किया जाएगा और संबंधित समितियों से इसकी समीक्षा की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) जल्द ही कई और एफडीसी दवाओं पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है, जो मरीजों के स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती हैं।
यह अध्ययन भारत में मानसिक बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त दवाओं की स्वीकृति और सुरक्षा की दिशा में गंभीर प्रश्न उठाता है। अवैध कॉकटेल दवाओं के निरंतर बढ़ते बाजार को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और दवा उद्योग में मानक बनाए रखे जा सकें।
भारत में मानसिक बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त कॉकटेल दवाओं के अवैध प्रयोग की समस्या अत्यंत गंभीर है। अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि बाजार में उपलब्ध अधिकांश कॉकटेल दवाओं को सरकारी स्वीकृति प्राप्त नहीं है, जिससे मरीजों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जोखिम उत्पन्न हो रहा है। इन दवाओं की व्यापक बिक्री और उपयोग के बावजूद, उनकी मान्यता प्राप्त न होना एक बड़ा संकट है जो तत्काल ध्यान और कार्रवाई की मांग करता है। सरकार को चाहिए कि वह अवैध दवाओं के कारोबार को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए और दवा की स्वीकृति प्रक्रिया को पारदर्शी और सख्त बनाये। इससे न केवल मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि दवा उद्योग में मानकों का पालन भी सुनिश्चित होगा।
Source- अमर उजाला