रिपोर्ट: घरेलू जहरीला कचरा पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा

saurabh pandey
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एक गैर सरकारी संगठन टॉक्सिक लिंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली, जयपुर, भोपाल, रांची और कोयंबटूर में किए गए अध्ययन ने खुलासा किया है कि घरेलू खतरनाक कचरे का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

इस रिपोर्ट में उच्चलवणीय दवाइयां, पैंट, प्लास्टिक कंटेनर, सीएफएल बल्ब, विनिर्मित और इस्तेमाल की गई दवाइयां, और अन्य विषाक्त पदार्थों के साथ एक्सपायर हो चुकी दवाइयां शामिल हैं। ये सभी उत्पाद घरेलू जीवन में सामान्य रूप से प्रयुक्त होते हैं, लेकिन उनके निषेध की जरूरत है ताकि वे पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचा सकें।

अध्ययन के अनुसार, भारत में हर दिन लगभग 1,600 से 6,401 टन घरेलू कचरा उत्पन्न होता है, जिसे समय पर सुरक्षित तरीके से निपटाना मुश्किल होता है। यह रिपोर्ट उठाती है कि बायोमेडिकल अपशिष्ट और अन्य ठोस अपशिष्ट का सम्बल लगभग एक से चार प्रतिशत है, जो इनके सुरक्षित प्रबंधन को लेकर चुनौती प्रस्तुत करता है।

इस रिपोर्ट ने उठाया है कि अप्रयुक्त और बचे हुए घरेलू उत्पाद स्थायी, प्रतिक्रियाशील, विषाक्त, और ज्वलनशील हो सकते हैं, जिससे पर्यावरणीय समस्याओं को और भी बढ़ावा मिलता है। अध्ययन के अनुसार, लगभग आठ प्रतिशत लोग अपने खतरनाक कचरे को घरेलू कचरे के साथ फेंक देते हैं, जबकि लगभग 53 प्रतिशत घरों में नियमित कचरे के साथ पैराबेसिस्ट थर्मामीटर फेंक दिया जाता है।

इस रिपोर्ट ने भी दर्शाया है कि खतरनाक घरेलू कचरे के प्रबंधन में चोट लगने की घटनाएं सभी शहरों में रिकॉर्ड की गई हैं, और इसका राष्ट्रीय औसत 31 प्रतिशत है, जो इसे समझने और सुधारने की आवश्यकता को दर्शाता है।

टॉक्सिक लिंक के प्रमुख शोधकर्ता प्रीति बंठिया महेश ने इसे बताया कि इन संक्षारकों के प्रबंधन में सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरण और स्वास्थ्य को इसके असरों से बचाया जा सके।

स्रोत: दैनिक जागरण, टॉक्सिक लिंक

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