इस साल दिल्ली समेत उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में भारी बारिश देखी जा रही है। जनवरी से लेकर अब तक कुल 955.8 मिमी बारिश हो चुकी है, जबकि इस मौसम के खत्म होने तक और बारिश की संभावना बनी हुई है।
मौसम विभाग और वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बारिश की मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन है, जिसके चलते समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है। आईआईटीएम पुणे के क्लाइमेटोलॉजिस्ट रक्सी मैथ्यू कौल का मानना है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि से अधिक वाष्प बनती है, जो बाद में तीव्र बारिश के रूप में धरती पर बरसती है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में सतही तापमान के बढ़ने से यह असर और तेज़ हो गया है।
ग्लोबल वार्मिंग और बारिश का बदलता पैटर्न
ग्लोबल वार्मिंग के कारण पश्चिमी विक्षोभ भी कमजोर हो रहे हैं, जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ रही है। स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत के अनुसार, इस साल ज्यादा बारिश का एक और कारण अल नीनो का खत्म होना है, जिसके बाद ला नीनो बनने की संभावना है। इससे समुद्र की सतह का तापमान औसतन 0.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है, जो ज्यादा भाप और बादलों के निर्माण का कारण बन रहा है।
समुद्री हीटवेव और चक्रवातों का खतरा
हिंद महासागर में तापमान 2020 से 2100 के बीच 1.7 से 3.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इससे समुद्री हीटवेव और तीव्र चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होगी। शोध से पता चला है कि असामान्य रूप से गर्म समुद्री तापमान की घटनाएं प्रति वर्ष 20 दिनों से बढ़कर 220-250 दिन तक पहुंच सकती हैं। इसका परिणाम यह होगा कि उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर बेसिन स्थायी हीटवेव की चपेट में आ जाएगा।
यह गर्मी कोरल ब्लीचिंग और मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी, साथ ही चक्रवातों की तीव्रता को भी बढ़ाएगी। इससे मानसून पर सीधा असर पड़ेगा और भारत के कृषि और पर्यावरण पर इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
समुद्र की सतह के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न तेजी से बदल रहा है, जिससे किसानों और जल प्रबंधन में चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। इसके साथ ही भविष्य में चक्रवात और विनाशकारी घटनाओं में वृद्धि की आशंका भी जताई जा रही है, जिससे सतर्क रहने की आवश्यकता है।
समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता और पैटर्न में बदलाव हो रहा है, जो आने वाले समय में गंभीर प्रभाव डाल सकता है। इस बदलते पर्यावरण के कारण अधिक तीव्र बारिश, चक्रवातों की बढ़ती संख्या, और विनाशकारी घटनाओं की आशंका है। किसानों और जल प्रबंधन प्रणाली पर इसका दबाव बढ़ रहा है, जिससे उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, जलवायु परिवर्तन को रोकने और इसके प्रभावों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है, ताकि भविष्य में आने वाले खतरों से निपटा जा सके।
Source- dainik jagran