भारत में भारी बारिश की घटनाओं में तीव्र वृद्धि का पूर्वानुमान: जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा

saurabh pandey
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जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में मौसम के पैटर्न तेजी से बदल रहे हैं। हाल के वर्षों में, भारत में भी इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगे हैं। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के एक ताजा अध्ययन के अनुसार, इस सदी के अंत तक देश में अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में 58 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है। यह वृद्धि विशेष रूप से पश्चिमी घाट और मध्य भारत जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती है, जहां पहले से ही भारी वर्षा के कारण समस्याएं उत्पन्न होती रही हैं।

वायुमंडल में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर और इसके दुष्प्रभाव

आईआईटीएम के शोधकर्ताओं ने इस वृद्धि का मुख्य कारण वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को बताया है। इस उत्सर्जन से जलवायु में असंतुलन पैदा हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक भारी बारिश जैसी चरम मौसम घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। यह परिवर्तन विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के लिए चिंताजनक है, जहां एक बड़ा हिस्सा पहले से ही मानसून पर निर्भर है।

दीर्घकालिक और अल्पकालिक बारिश की घटनाओं का बढ़ता प्रभाव

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 2071 से 2100 के बीच लंबे समय तक चलने वाली अत्यधिक बारिश की घटनाओं में 18 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जो 1982 से 2014 के बीच की तुलना में काफी अधिक है। वर्तमान में भारत के लगभग आठ प्रतिशत भू-भाग में ऐसी अत्यधिक बारिश होती है, लेकिन शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस क्षेत्र में भी वृद्धि होगी। यह न केवल कृषि और जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालेगा, बल्कि जान-माल का नुकसान भी बढ़ सकता है।

भविष्य की चुनौतियों का पूर्वानुमान: जान-माल का बढ़ता खतरा

आईटीएम के वैज्ञानिक जस्ती एस चौधरी के अनुसार, भविष्य में मॉनसून के दौरान मध्यम से लेकर उच्च परिदृश्यों के तहत बारिश की तीव्रता में छह से 21 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। इसका मतलब है कि अत्यधिक बारिश वाले दिनों की संख्या सालाना चार से बढ़कर नौ दिन तक हो सकती है। यह वृद्धि न केवल देश की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी गंभीर चुनौतियां पेश कर सकती है।

चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि: हाल के दशकों की स्थिति

आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया द्वारा हाल ही में किए गए एक अन्य अध्ययन में भी चरम मौसम की घटनाओं और उनकी गंभीरता में वृद्धि का संकेत दिया गया है। पिछले 30 वर्षों में, भारत में मार्च से सितंबर तक की अवधि में अत्यधिक लू वाले दिनों की संख्या में 15 गुना वृद्धि देखी गई है। इसी अवधि में, दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में अनियमित बारिश के कारण भूस्खलन जैसी घटनाओं में भी वृद्धि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

भारत के विभिन्न हिस्सों पर प्रभाव: कौन से क्षेत्र हैं सबसे अधिक संवेदनशील?

अध्ययन के अनुसार, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्यों में अत्यधिक गर्मी और भारी बारिश दोनों का सामना करना पड़ रहा है। यह अध्ययन दर्शाता है कि 84 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिलों को अत्यधिक हीटवेव हॉटस्पॉट के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत जिले मॉनसून के दौरान लगातार और अनियमित बारिश का सामना कर रहे हैं, जिससे यहां की स्थिति और भी विकट हो गई है।

भविष्य की दिशा: क्या हो सकते हैं संभावित समाधान?

इन बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को अपने जलवायु नीति और आपदा प्रबंधन रणनीतियों को मजबूत करना होगा। इससे जुड़े विभिन्न अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि अगर वर्तमान स्थिति को नहीं संभाला गया, तो भविष्य में इसका गंभीर प्रभाव देश के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और मानव जीवन पर पड़ेगा।

भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह समय है कि वह जलवायु परिवर्तन के इस बढ़ते खतरे को गंभीरता से ले और उसके अनुरूप अपनी नीतियों को तैयार करे। अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में संभावित वृद्धि और उसके कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि समय पर कार्रवाई की जाए, तो इन संभावित खतरों को कम किया जा सकता है, जिससे न केवल पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि देश की स्थिरता और समृद्धि भी बनी रहेगी।

Source and data- down to earth

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