मौसम विभाग की सटीकता पर सवाल, मानसून पूर्वानुमान में आई बड़ी खामियां

saurabh pandey
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मौसम विभाग इस बार मानसून के पूर्वानुमानों में गंभीर खामियों का सामना कर रहा है, जिससे जनता और विशेषज्ञों के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। विभाग द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमानों में लगातार गलतियां और अलर्ट के बार-बार बदलने से स्थिति संकटपूर्ण हो गई है।

मौसम विभाग का मानना था कि इस सीजन के दौरान मानसून में स्थिरता होगी, लेकिन 28 जून को राजधानी में हुई रिकॉर्ड बारिश ने विभाग की योजनाओं की धज्जियां उड़ा दीं। इस वर्ष के पूर्वानुमान में सटीकता का स्तर 77% तक गिर गया है, जो पिछले 14 वर्षों में सबसे कम आंकड़ा है। 2022 में पूर्वानुमानों की सटीकता 96% थी, लेकिन इस बार के आंकड़े ने सवाल खड़े कर दिए हैं।

मौसम विभाग के पूर्वानुमानों में कमी के पीछे की वजहों में संसाधनों की कमी, आकलन में खामियां और संभावित प्राकृतिक आपदाएं शामिल हैं। यह समस्या तब और गंभीर हो गई जब कई क्षेत्रों में एक ही दिन में भिन्न प्रकार की बारिश देखी गई—कहीं तेज तो कहीं हल्की बारिश। इस प्रकार की बारिश को ‘पैची रेन’ कहा जाता है, जो कि पूर्वानुमानों की सटीकता की चुनौती को और बढ़ाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, मानसून के पूर्वानुमान में इस तरह की कमी से न केवल दैनिक जीवन प्रभावित होता है, बल्कि कृषि और जलवायु प्रबंधन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मौसम विभाग को जल्द से जल्द सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में सही और सटीक पूर्वानुमान प्रदान किए जा सकें और लोगों को आपात स्थितियों से बचाया जा सके।

मौसम विभाग की मौजूदा समस्याओं के मद्देनजर, मानसून पूर्वानुमानों की सटीकता में कमी स्पष्ट रूप से चिंताजनक है। लगातार हो रही गलतियों और बार-बार बदलते अलर्टों ने जनता के बीच अविश्वास पैदा कर दिया है और मौसम विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। 2022 में दर्ज की गई 96% सटीकता के मुकाबले, इस साल का 77% आंकड़ा दर्शाता है कि सुधार की आवश्यकता है।

विभाग को अपने संसाधनों और आकलन विधियों में सुधार करना होगा ताकि भविष्य में मानसून के पूर्वानुमान अधिक सटीक और भरोसेमंद बन सकें। यह न केवल दैनिक जीवन और कृषि पर प्रभाव डालता है, बल्कि आपात स्थितियों में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए भी महत्वपूर्ण है।

Source and data – दैनिक जागरण

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