नासा ने लॉन्च किया पहला छोटा जलवायु उपग्रह
धरती के चारों ओर मौसम प्रणालियों पर ध्रुवीय जलवायु परिवर्तन के असर के बारे में मिलेगी जानकारी
न्यूजीलैंड। नासा ने शनिवार को न्यूजीलैंड के उत्तर में माहिया से रॉकेट लैब नामक कंपनी के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 1 से शाम 7:41 बजे एक छोटे डिब्बे के आकार का पहला छोटा जलवायु उपग्रह लॉन्च किया। इसे एक इलेक्ट्रॉन रॉकेट से लॉन्च किया गया। इस पूरे मिशन को प्रीमियर (फार-इन्फ्रारेड एक्सपेरिमेंट्स पोरल रेडिएंस एनर्जी) नाम दिया गया है।
मिशन में दो शूबॉक्स के आकार के वायुमंडलीय उपग्रह शामिल हैं। यह उपग्रह धरती के चारों ओर मौसम प्रणालियों पर ध्रुवीय जलवायु परिवर्तन के असर को समझने में वैज्ञानिकों को मदद करेंगे। इससे वैज्ञानिकों को पृथ्वी की जलवायु प्रणालियों को बेहतर समझने और अध्ययन करने में मदद मिलेगी।
पृथ्वी की प्रणाली को लेकर समझ बेहतर करेगा
नासा के पृथ्वी विज्ञान अनुसंधान निर्देशक सैंट जर्मेन ने हाल ही में कहा था कि ध्रुवों में क्या हो रहा है, जलवायु में क्या हो रहा है जैसी नई जानकारी जो हमारे पास पहले कभी नहीं थी। प्रीमियर मिशन उसका नमूना या मॉडल तैयार करने की हमारी क्षमता में सुधार करेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के छोटे उपग्रह बहुत व्यापक वैज्ञानिक सवालों का जवाब देने का एक कम लागत वाला तरीका है। यह उपकरण की सामान्यायॉं और ऊंचे उपकरणों की विरासत मान को दिखा सकता है और नासा को दोनों की जरूरत है। नासा का ताजा प्रीमियर मिशन पृथ्वी के ऊर्जा बजट का अध्ययन और जलवायु मॉडल की जांच करेगा।
ऊर्जा पर ध्रुवीय क्षेत्रों के असर का पता चलेगा
जर्मेन ने बताया कि लॉन्च किया गया उपग्रह हमें वैज्ञानिकों को एक विस्तृत दृष्टिकोण दिखाएगा कि पृथ्वी के ऊर्जा बजट के ध्रुवीय क्षेत्रों के असर का क्या परिणाम निकलेंगे। इससे हमें जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी में सुधार मिलेगा। इस मिशन से वैश्विक जलवायु परिवर्तन के बारे में नई जानकारियाँ मिलेंगी और समग्र स्तर पर पृथ्वी की भविष्यवाणी में सुधार होगा।
पृथ्वी के ध्रुवों का अध्ययन करने को जलवायु उपग्रह लॉन्च
नासा का मिशन
10 माह के लिए होगा संचालित, पृथ्वी द्वारा अंतरिक्ष में उत्सर्जित होने वाली गर्मी की मात्रा को मापेंगे
(न्यूजीलैंड), एजेंसियां: नासा ने पृथ्वी के ध्रुवों से ऊर्जा उत्सर्जन का अध्ययन करने के लिए शनिवार को एक अनूठे जलवायु उपग्रह का सफलतापूर्वक लॉन्च किया। नासा ने न्यूजीलैंड के माहिया प्रायद्वीप के उत्तरी हिस्से से शाम 7:41 बजे इस मिशन को लॉन्च किया। इस मिशन का नाम “प्रीमीयर” (फार-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपिक क्यूबसैट) है। इसमें शामिल दो क्यूबसैट उपग्रह ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे।
क्यूबसैट से जलवायु परिवर्तन से निपटने में मिलेगी मदद
मिशन के तहत उपग्रहों में लगे उपकरण पृथ्वी की ऊष्मा की मात्रा को मापेंगे, जो ध्रुवीय क्षेत्रों से अंतरिक्ष में उत्सर्जित होती है। इससे वैज्ञानिकों को जलवायु मॉडल को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। प्रीमीयर मिशन अगले 10 महीनों तक संचालित होगा और इस अवधि में यह महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करेगा।
ऊर्जा बजट का अध्ययन
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार, इस मिशन से प्राप्त आंकड़े हमें पृथ्वी के ऊर्जा बजट के बारे में अधिक समझ देंगे। इससे जलवायु परिवर्तन को समझने और उससे निपटने के तरीकों में सुधार आएगा। मिशन के दौरान उपग्रह उन वायुमंडलीय प्रक्रियाओं को भी समझेंगे जो ध्रुवीय क्षेत्रों में हो रही हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन
मिशन के जरिए वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर ध्रुवीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन करेंगे। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि ध्रुवीय क्षेत्रों में हो रहे बदलाव कैसे वैश्विक जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, वैज्ञानिक अधिक सटीक जलवायु मॉडल विकसित कर सकेंगे।
पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन पर प्रभाव
नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मिशन से हमें पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन पर प्रभाव का भी पता चलेगा। इससे हम यह जान पाएंगे कि किस प्रकार ध्रुवीय क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन वैश्विक तापमान और मौसम प्रणालियों को प्रभावित कर रहे हैं।
महत्त्वपूर्ण कदम
यह मिशन नासा के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिससे वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी और इससे निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकेंगे। यह मिशन धरती के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे प्राप्त आंकड़े आने वाले वर्षों में जलवायु नीति और अनुसंधान को दिशा देंगे।
