हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में स्किन केयर उत्पादों में माइक्रोबीड्स की मौजूदगी ने चिंता को जन्म दिया है। ये छोटे प्लास्टिक कण त्वचा को एक्सफोलिएट करने के लिए उपयोग किए जाते हैं और दुनिया के कई देशों में पहले ही प्रतिबंधित किए जा चुके हैं। भारत में अब तक इन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जबकि भारत का व्यक्तिगत देखभाल उद्योग तेजी से बढ़ रहा है।
माइक्रोबीड्स का खतरा
माइक्रोबीड्स छोटे प्लास्टिक कण होते हैं जो स्किन केयर प्रोडक्ट्स जैसे फेस वॉश और शॉवर जैल में होते हैं। इनका उपयोग त्वचा को साफ करने के लिए किया जाता है, लेकिन ये पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। भारत के कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के हालिया अध्ययन में 45 व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में से 45% में माइक्रोबीड्स पाए गए हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
माइक्रोबीड्स महासागरों में जाकर समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं और पर्यावरणीय प्रदूषण बढ़ाते हैं। ये कण खाने से समुद्री जीवों के शरीर में विषैले रसायन जमा हो सकते हैं, जो अंततः मानव खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते हैं। इससे हार्मोन असंतुलन और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
शोधकर्ताओं की सिफारिशें
कोचीन विश्वविद्यालय की शोधकर्ता रिया एलेक्स का कहना है कि भारत को अन्य देशों की तरह माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने बेहतर लेबलिंग और प्राकृतिक विकल्पों को अपनाने की भी सिफारिश की। इसके साथ ही, उपभोक्ताओं को इन पदार्थों के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में जागरूक करना जरूरी है।
भारत में व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाना न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है। उपभोक्ताओं को इन कणों के खतरों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और प्राकृतिक विकल्पों की ओर बढ़ना चाहिए।
भारत में व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में माइक्रोबीड्स के उपयोग पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता है। नए शोध ने स्पष्ट रूप से दिखाया है कि ये छोटे प्लास्टिक कण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। दुनिया के कई देशों ने पहले ही माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगा दिया है, और भारत को भी इसी दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
माइक्रोबीड्स महासागरों और नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाते हैं, जिससे समुद्री जीवन और खाद्य श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, ये कण विषैले रसायनों के वाहक के रूप में काम कर सकते हैं, जो स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने बेहतर लेबलिंग, प्राकृतिक विकल्पों का उपयोग, और माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। उपभोक्ताओं को इन खतरों के बारे में जागरूक करना और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से जिम्मेदार विकल्प अपनाना जरूरी है। इस प्रकार के कदम भारत को एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में ले जाएंगे।
source- the guardian website