प्रकृति की अनदेखी का नतीजा

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देश में इन दिनों प्रचंड गर्मी और देहदाहक लू चल रही है। इसका कारण हाल के वर्षों में तेज हुई जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से भी जोड़ा जा सकता है। बीते दस वर्षों में सबसे ज्यादा गर्मी इस साल पड़ी है। कुछ शहरों में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। ऐसे में लोगों को गर्मी से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानियों की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्परिणाम

प्रकृति की अनदेखी और जलवायु परिवर्तन का असर हमारे जीवन पर गहरा हो रहा है। वन क्षेत्रों में कमी, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और तेजी से हो रहे शहरीकरण ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। इससे बारिश का पैटर्न भी बदल रहा है। जब बारिश होती है, तो वह अत्यधिक होती है, जिससे बाढ़ जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। वहीं, बाकी समय सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है।

अनियंत्रित शहरीकरण और औद्योगीकरण

बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है। कारखानों से निकलने वाला धुआं और वाहन से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।

भविष्य के लिए चुनौती

अगर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जल्द ही बड़े कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में लू के थपेड़ों में तीन से चार गुना बढ़ोतरी दिखाई देगी। इससे बचने के लिए जरूरी है कि हम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गंभीर कदम उठाएं। अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, ऊर्जा की बचत करें और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग बढ़ाएं।

सरकार और समाज की भूमिका

सरकार को चाहिए कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त कानून बनाए और उन्हें सख्ती से लागू करे। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और प्रकृति के संरक्षण में अपना योगदान देना होगा। तभी हम इस गंभीर समस्या का समाधान कर सकेंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित कर पाएंगे।

रक्षित कौशिक

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