देश में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, और इसके पीछे एक बड़ा कारण परिवहन क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन है। विशेष रूप से, सार्वजनिक परिवहन की पुरानी बसें, जो कि अपने जीवन काल के अंतिम दौर में हैं, बड़े पैमाने पर प्रदूषण का स्रोत बन रही हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने एक नए और व्यावहारिक समाधान की ओर कदम बढ़ाया है। परिवहन निगमों की पुरानी बसों में इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) किट लगाने का प्रस्ताव इस दिशा में एक प्रमुख पहल है।
प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में नया कदम
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य पुराने डीजल और पेट्रोल इंजन वाली बसों को ईवी किट में तब्दील करना है। ईवी किट से लैस बसें न केवल प्रदूषण कम करेंगी, बल्कि सार्वजनिक परिवहन को भी अधिक पर्यावरण के अनुकूल बनाएंगी। सरकार का मानना है कि यह समाधान उन राज्यों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा जहां परिवहन संसाधनों की कमी है और नए वाहनों की खरीद आसान नहीं है।
पुरानी बसें: प्रदूषण का मुख्य स्रोत
राजधानी दिल्ली समेत कई बड़े शहरों में पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों के संचालन पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, विशेषकर 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर। हालांकि, यह नीति सभी राज्यों में प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाई है। परिणामस्वरूप, पुराने वाहनों के उत्सर्जन से होने वाला वायु प्रदूषण अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
कई राज्य सरकारों ने अलग-अलग अवधि के पुराने वाहनों पर प्रतिबंध तो लगाया है, लेकिन क्रियान्वयन में गंभीरता की कमी देखी गई है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अब पुरानी और फिट बसों में ईवी किट लगाने का विकल्प सुझाया है।
ईवी किट से समाधान की दिशा में कदम
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने ऑटोमोबाइल कंपनियों से अनुरोध किया है कि वे इस नई तकनीक पर काम करें, ताकि पुरानी बसों को नए सिरे से अपग्रेड किया जा सके। इसके तहत, उन बसों को चुना जाएगा जो शारीरिक रूप से फिट हैं और जिनके डीजल इंजन को हटा कर इलेक्ट्रिक किट लगाई जा सकती है।
यदि यह योजना सफल होती है, तो राज्य सरकारें पुराने बसों के बेड़े को स्क्रैप करने के बोझ से बच सकेंगी, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण में भी एक बड़ा योगदान दे सकेंगी। यह योजना देश के उन क्षेत्रों में विशेष रूप से फायदेमंद साबित होगी, जहां सार्वजनिक परिवहन संसाधन सीमित हैं और नए वाहन खरीदना आर्थिक रूप से कठिन है।
स्क्रैपिंग नीति और उसका महत्व
सरकार की स्क्रैपिंग नीति का मुख्य उद्देश्य पुराने और अनफिट वाहनों को धीरे-धीरे हटाकर उन्हें पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों से बदलना है। बीएस-6 (भारत स्टेज-6) मानकों के अनुरूप फिट वाहनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जबकि बीएस-4 और उससे पुराने वाहनों पर रोक लगाने की योजना है।
पुरानी बसों की स्क्रैपिंग से जुड़े आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। एक अध्ययन के अनुसार, देश में लगभग 2.8 लाख बसें परिवहन निगमों द्वारा संचालित हैं, जबकि जरूरत करीब 30 लाख बसों की है। इस मांग और आपूर्ति के अंतर को देखते हुए, पुरानी बसों को ईवी किट में बदलने का विकल्प एक प्रभावी समाधान हो सकता है।
तकनीकी चुनौतियाँ और अवसर
ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि वे पुरानी बसों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के लिए सस्ती और प्रभावी तकनीक विकसित करें। हालांकि, इसमें अवसर भी हैं। अगर यह तकनीक सफल हो जाती है, तो यह देश में सार्वजनिक परिवहन के पूरे ढांचे को बदलने में सक्षम हो सकती है। इससे न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि सरकार और परिवहन निगमों को भारी आर्थिक लाभ भी मिलेगा।
अधिक किफायती और टिकाऊ परिवहन का भविष्य
यदि इस नीति को सफलतापूर्वक लागू किया गया, तो यह देशभर में सार्वजनिक परिवहन को अधिक किफायती, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बना सकती है। इससे न केवल वायु प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि यातायात प्रबंधन भी बेहतर हो सकेगा।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आम नागरिकों के लिए यह बदलाव जीवन स्तर को सुधारने में मदद करेगा। अधिक स्वच्छ हवा, बेहतर परिवहन और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण से देश के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
पुरानी बसों में इलेक्ट्रिक व्हीकल किट लगाने की यह पहल देश के सार्वजनिक परिवहन में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। स्क्रैपिंग नीति के साथ मिलकर यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक होगा, बल्कि राज्यों के परिवहन संसाधनों को भी मजबूत करेगा। सरकार की इस नई योजना पर सभी की नजरें टिकी हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह पहल कितना सफल होती है और किस हद तक प्रदूषण कम करने में योगदान देती है।
पुरानी बसों में इलेक्ट्रिक व्हीकल किट लगाने की योजना वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक व्यावहारिक और पर्यावरण-अनुकूल समाधान साबित हो सकती है। स्क्रैपिंग नीति के साथ यह कदम न केवल प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि सार्वजनिक परिवहन को सस्ता और टिकाऊ बनाएगा। इससे राज्यों को नए वाहनों पर भारी खर्च से राहत मिलेगी, जबकि पुरानी बसों का बेड़ा नए जीवन चक्र के साथ परिचालन में रहेगा। यदि इस तकनीक का सफल क्रियान्वयन होता है, तो यह परिवहन क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में उभरेगा, जिससे पर्यावरण संरक्षण और मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
Source- dainik jagran