आज दो व्रत एक ही दिन है, वट सावित्री पूजा और शनि जयंती! सनातन परंपरा में वट पूजा का सौभाग्य के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान है। यह पूजा मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं करती हैं, जो अपने पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं। वट वृक्ष को अमरता और अनंत जीवन का प्रतीक माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से संघर्ष किया और वट वृक्ष के नीचे ही तपस्या की थी। इस घटना के कारण वट वृक्ष को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
और आज शनि जयंती के अवसर पर पीपल वृक्ष की पूजा भी होगी जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे विष्णु का प्रतीक भी माना जाता है और इसके नीचे नियमित रूप से पूजा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर शनि मंत्रों का जाप और हवन करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को कष्टों से मुक्त करते हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए सनातन परंपरा में शनि जयंती में पीपल वृक्ष की पूजा और वट वृक्ष की पूजा दोनों को सम्मान प्रकट करने का दिन, आधुनिक और सुविधाओं की दृष्टिकोण से इसे न देखे बल्कि समझ और ज्ञान से परखें और सन्तान को समझाये!मन्दिरों के पास एक ही जगह दोनों वृक्ष एक साथ लिपटे है मानो दोनों एक दूसरे के रक्षक हो मैं वहीं जा रही हूँ और एकता को परखने पर विचार कर रही!
लोग कल शाम से बड़ की टहनियों को तोड़ तोड़ ले जा रहे हैं जबकि आसपास ही रहते हैं, उन्हें उनकी जड़ों को सिंचित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है पर न करेंगे हाँ ये बात और है कि दण्ड़ अधिकारी शनि के भय से उसे वहीं पूजा करने जाए सोच रही हूँ कि अधिक उदारता से तो कठोर होना ही सही है, ये बात काश देश भी समझे, बातों में कहाँ उलझ गई आज तो व्यस्तता का दिन है साथ ही सभी को शुभकामनाएं!
मेनका त्रिपाठी
prakritiwad.com